उपभोक्ताओं की अनदेखी
लोकल सर्किल्स के सर्वेक्षण से पता चला है कि 89% मोबाइल उपभोक्ताओं को कॉल कनेक्ट होने में समस्या हो रही है। इनमें से 40% ने अक्सर ऐसी स्थिति का सामना करने की बात की।
![]() उपभोक्ताओं की अनदेखी |
देश के 342 जिलों के रहवासियों से सव्रेक्षण में छप्पन हजार से अधिक प्रतिक्रियाएं ली गई। कॉल करने में दिक्कत के अलावा अचानक फोन कटने की भी शिकायतें आम हैं। जिससे उपभोक्ताओं को बार-बार डेटा/वाई-फाई कॉल यानी व्हाट्सएप, फेसटाइम या स्काइप करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। डाटा फॉर इंडिया के मुताबिक बीते साल ही भारत में हर सौ लोगों पर 81 मोबाइल कनेक्शन हो चुके हैं। हालांकि इसमें कई लोगों के पास दो से ज्यादा कनेक्शन भी हो सकते हैं।
फिर भी अंदाजन इस वक्त 84% से अधिक भारतीयों के पास मोबाइल कनेक्शन है, जिसमें स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं की संख्या 2026 में सौ करोड़ पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। इंटरनेट के प्रयोग और रोजमर्रा में फोन की आवश्यकता ने नौजवानों को मोबाइल कनेक्शन के प्रति बेहद आकृष्ट किया है। आंकड़ों के अनुसार दुनिया के शीर्ष दस दस विकसित देशों की तीन चौथाई आबादी के हाथ में स्मार्टफोन है। बावजूद इसके कंपनियां उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा देने में बुरी तरह नाकाम हैं।
इसके लिए सरकार का लापरवाह रवैया भी कम दोषी नहीं कहा जा सकता। उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम होने के बावजूद कंपनियों द्वारा लगातार उनकी उपेक्षा की जाती है। फोन कनेक्शन बढ़ने से उत्साहित टेलीकंपनियों को अपनी सेवाओं को लेकर सतर्क और जवाबदेह बनना होगा। किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान के उत्तरदायित्वों के निर्वहन में होने वाली कोताही के प्रति सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए।
यदि फोन कंपनियों का इन्फ्रास्ट्रक्चर यह भार सहन करने में सक्षम नहीं है तो वे नये कनेक्शन तब तक देने में हाथ सिकोड़ सकती हैं। जब तक उनका सिस्टम सटीक नहीं हो जाता। जब तारों द्वारा जोड़े जाने वाले लैंड लाइन होते थे, तब लाइन्स सीमित होने के कारण व्यस्त समय में उपभोक्ताओं को सभी लाइनें व्यस्त हैं, जैसी सूचना देने की सुविधाएं थीं। अब तमाम तकनीकी सुविधाओं और मोटी रकम चुकाने वाले उपभोक्ता को फोन कंपनियों की यह जानबूझकर की जा रही लापरवाही क्यों बर्दाश्त करनी पड़ रही है। सरकार और दूरसंचार मंत्रालय को इस पर कड़े कदम उठाने होंगे।
Tweet![]() |