महाराष्ट्र में भाषाई सियासत
मराठी को महाराष्ट्र और मुंबई की भाषा है, यहां रहने वाले व्यक्ति को इसे सीखना और बोलना चाहिए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने संघ के वरिष्ठ नेता भैयाजी के बयान के बाद उठे विवाद पर कहा।
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जोशी ने कहा था, मुंबई की एक भाषा नहीं है, मुंबई में कई भाषाएं हैं। अलग-अलग इलाकों की अलग-अलग भाषाएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुंबई आने वालों को मराठी सीखने की कोई जरूरत नहीं। इस पर विपक्षी महाअघाड़ी में शामिल राजनीतिक दल इस विवाद में एकजुट हो गए और जोशी के बयान की आलोचना की।
हालांकि बाद में जोशी ने बयान से पलटते हुए अपनी टिप्पणी को गलत तरीके से देखे जाने की बात की और मराठी को महाराष्ट्र व मुंबई की भाषा बताया। शिवसेना (उद्धव) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने जोशी पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाए। देश के संविधान में 22 भारतीय भाषा को मान्यता दी गई है, जबकि आधिकारिक भाषाएं आज भी हिन्दी व अंग्रेजी ही हैं।
राजनीति के चलते 2018 में इसमें असमिया व मणिपुरी को भी इसमें शामिल किया गया। विभिन्न राज्यों के लोग अपनी-अपनी भाषाओं को संविधान की अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाते रहते हैं। स्थानीय स्तर पर इन भाषाओं का महत्त्व होने के बावजूद आम जनता के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। दक्षिणी राज्यों में भी हिन्दी का जो विरोध होता है, उसके पीछे शुद्ध राजनीतिक कारण हैं।
व्यावहारिक स्तर पर जोशी की बात सटीक हाने के बावजूद भाषाई विवाद को तूल देने वाले भी अपनी राजनीति चमकाने का काम कर रहे हैं। यह सही है कि मुंबई में मराठी बोलने वालों से गुजराती बोलने वाले भी कम नहीं हैं। दूसरे मुंबई हिन्दी फिल्मों का गढ़ है। जो दुनिया भर में देश की पहचान ही नहीं कायम करते हैं।
भाषा के झगड़े को तूल देने की जरूरत तो नहीं है मगर भैयाजी को भी अपना बयान सिर्फ इसीलिए वापस लेना पड़ा क्योंकि इससे मराठी भाषियों की भावनाएं आहत होने की आशंकाएं बढ़ रही थीं। मातृभाषाओं से प्रेम करने वाले भारतीय अपने देश की अखंडता और सहिष्णुता को भाषाई विभेद से बहुत ऊपर आंकते हैं। यही कारण है कि हम इतनी सारी बोलियों व भाषाओं को साथ लेकर चलते रहे हैं।
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