कम मतदान पर चिंता
सात चरणों में कराए जा रहे आम चुनाव-24 के प्रथम चरण में 2019 की तुलना में करीब चार फीसद कम मतदान होने से चुनाव आयोग, राजनीतिक दल गरज यह कि चुनाव प्रक्रिया से संबद्ध सभी पक्ष चिंता में पड़ गए हैं।
कम मतदान पर चिंता |
गौरतलब है कि अठारहवीं लोक सभा के लिए प्रथम चरण का मतदान अपेक्षाकृत धीमी गति से शुरू हुआ लेकिन दिन चढ़ने के बाद भी धीमापन आखिर तक बरकरार रहा। मतदान के एक दिन बाद ही शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मतदाताओं से अपील की कि मतदान, चाहे किसी को भी वोट करें, में जरूर हिस्सा लें।
कम मतदान के कारणों की पड़ताल शुरू हो चुकी है, और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कई राज्यों में लू की स्थिति, शादियों के मुहूर्त और मतदाताओं में उत्साह की कमी के चलते मतदान फीसद में गिरावट आई है। चार फीसद कम मतदान का मतलब हुआ कि पिछली बार की तुलना में इस बार करीब 48 लाख मतदाता मत देने नहीं पहुंचे। मतदान का पहला चरण बाकी के चरणों का रुख तय करता है, जैसा कि पिछले दो संसदीय चुनावों के आंकड़ों से पता चलता है।
इस लिहाज से कहा जा सकता है कि बाकी बचे छह चरणों में भी मतदाताओं में उदासीनता का रुख बना रह सकता है, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात नहीं है। यह सवाल परेशानी का सबब बन चुका है कि आखिर, शिक्षित मतदाता तक अपने मताधिकार का उपयोग करने के प्रति इस कदर गैर-जिम्मेदाराना रवैया क्यों अपना रहा है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि देश के नागरिक का अपने देश के प्रति, लोकतंत्र के प्रति दायित्व सर्वोपरि है।
यदि नागरिक इस प्रकार से मतदान के प्रति बेरुखी दिखाएगा तो लोकतंत्र कैसे समृद्ध बना रह पाएगा। आने वाले छह चरणों में भी मतदाता का यही रुख न बना रहे इसके लिए समन्वित प्रयास करने जरूरी हैं। हालांकि चुनाव आयोग चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए खासे प्रयास अरसे से करता रहा है।
इस क्रम दस से ज्यादा मशहूर हस्तियों को राजदूत के रूप में नियुक्त करने के साथ ही आईपीएल दर्शकों के बीच मतदान के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया गया। कहना यह कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को अपने अधिकार के उपयोग यानी मतदान के लिए प्रेरित करने में अपने तई कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन इसके बावजूद मतदान में गिरावट देखने को मिली है। मतदान को अनिवार्य किए जाने का विकल्प भी खुला है। हालांकि वह नौबत न ही आए तो अच्छा।
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