छात्र संघ चुनाव में जेएनयू में लाल सलाम

Last Updated 27 Mar 2024 01:26:38 PM IST

जवाहरलाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू - JNU) में हुए छात्र संघ चुनाव में वाम ने जेएनयूएसयू (JNUSU) में जीत हासिल की। गया (बिहार) के छात्र धनंजय को अध्यक्ष चुना गया जो विविद्यालय से पीएचडी कर रहे हैं।


छात्र संघ चुनाव में जेएनयू में लाल सलाम

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को सभी चार केंद्रीय सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि 28 साल बाद जेएनयू छात्र संघ को दलित अध्यक्ष मिला है। धनंजय ने एबीवीपी के उमेशचंद्र को 922 मतों से हराया। स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के अविजीत घोष उपाध्यक्ष पद पर जीते।

इस बार 73% मतदान हुआ, जो बीते बारह वर्षो में सबसे अधिक है। इस जनमत को नफरत और हिंसा की राजनीति को खारिज करने वाला ठहराते हुए नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने महिलाओं की सुरक्षा, कोष में कटौती, छात्रवृत्ति वृद्धि, बुनियादी ढांचा और जल संकट को अपनी प्राथमिकताओं में गिनाया।

देश को अनेक प्रसिद्ध  शिक्षाविद्, इतिहासकार, अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ देने वाला जेएनयू एनआईआरएफ की रैंकिंग में लगातार सर्वश्रेष्ठ तीन विविद्यालयों में शामिल रहता है। शुरुआत से ही यहां सेक्युलर होने का दावा करने के पीछे वामपंथी रुझान होने के आरोप लगते रहे हैं। इस पर वामपंथ द्वारा उकसाई हिंसा का लंबा इतिहास होने का आरोप भी है।

कहना गलत नहीं है कि यह कैम्पस अपनी प्रसिद्धि के साथ-साथ विवादों में भी घिरा रहता है। बीते दिनों महिषासुर की पूजा से लेकर भारत तेरे टुकड़े होंगे तथा दीवारों पर लिखे गए जातिसूचक नारों के लिए यह यूनिवर्सिटी खासी विवादित रही।

विश्वविद्यालय का शैक्षणिक स्तर गिरने से बचाने और माहौल को हिंसा से बचाने के प्रयासों के वायदों के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं कही जा सकती। यहां देश भर से आने वाले छात्र स्वर्णिम भविष्य के सपने लेकर आते हैं जिन्हें इन विवादों और लड़ाई-झगड़ों से बिलावजह खासा व्यवधान झेलना पड़ता है।

देशविरोधी गतिविधियों में छात्र संघ की भूमिका के कारण जो छवि धूमिल हुई है, वह धनंजय के समक्ष चुनौती होगी। उन्हें जाति विरोधी मसलों को भी गंभीरता से लेना होगा। ऐसे वक्त में जब लोक सभा चुनाव का माहौल चरम पर है, जेएनयू के चुनाव पर सब की नजरें टिकी थीं।

दक्षिणपंथी रुझानों के प्रति युवाओं की नीरसता काफी विरोधाभाषी मानी जा सकती है। कैम्पस की चारदिवारी के भीतर और बाहर की विचारधाराओं तथा रुझानों को अलग कर पाना मुश्किल हो सकता है।



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