उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएं अपनी प्राथमिकताएं तय करने को स्वतंत्र
कंपनियों में वरिष्ठ प्रबंधन पदों पर महिलाओं की मौजूदगी घट गई है। सलाहकार फर्म ग्रांट थॉर्नटन इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लगातार तीसरे साल कार्यस्थलों पर वरिष्ठ प्रबंधन भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी कम हुई है।
![]() महिला प्रबंधकों की प्राथमिकताएं |
कोविड महामारी की शुरुआत ने घर से काम करने को बढावा दिया था। इससे सभी श्रमिकों के लिए कामकाजी परिवेश बेहद लचीला बन गया था, लेकिन महामारी का प्रकोप खत्म होते ही कंपनियों ने कर्मचारियों को दोबारा दफ्तर बुलाना शुरू कर दिया। फर्म के अनुसार भारतीय मध्य बाजार कंपनियों में 34 फीसद महिलाएं फिलहाल वरिष्ठ पदों पर हैं, जबकि 2023 में 36 फीसद व 2022 में 38 फीसद से थोड़ी कम थीं।
बता रहे हैं घर से बाहर निकल कर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या घटकर सिर्फ 1.8 फीसद रह गई, जबकि यह आंकड़ा 2023 में 5.3 फीसद था। इस पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है। खासकर जब अपने यहां बेरोजगारी चरम पर है और महंगाई के चलते कमाई बढ़ाने का दबाव बना रहता है।
हाइब्रिड यानी घर से काम करने की सुविधा ने महिलाओं को कमाई के साथ परिवार व बच्चों को सम्भालने की जो सुविधा दी, उसे समाप्त कर कंपनियों ने यह स्थिति स्वयं पैदा की है। वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर काम करने वाली महिला कर्मचारी इस दोहरी जिम्मेदारी से मुक्ति चाहती है।
महानगरों में परिवहन संबंधी दिक्कतें, लंबी दूरियां और एकल परिवारों में बच्चों की देखभाल बड़ा मुद्दा है। कहा जा सकता है कि बाबूगिरी या मजदूरिनों को यह सुविधा नहीं है कि वे स्वेच्छा से कार्यमुक्त हो सकें, परंतु उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएं अपनी प्राथमिकताएं तय करने को स्वतंत्र हैं।
अभी भी अपने यहां काम की जगहों पर लैंगिक विषमताएं बुरी तरह व्याप्त हैं। यह सरकार, प्रबंधन व कंपनियों के लिए विचारणीय है कि वे अधिक से अधिक महिलाओं को काम पर लौटने के लिए प्रेरित करें ताकि उनके अनुभवों और प्रतिभा का लाभ लिया जा सके।
घर से काम करते हुए वे यदि अपना शत-प्रतिशत दे पा रही हैं तो उन्हें दफ्तर में बैठने के लिए मजबूर करने का कोई ठोस कारण नहीं हैं। भारतीय मध्यवर्गीय स्त्री के लिए अभी भी उसका घर-परिवार व बच्चे प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर हैं, यह ख्याल रखा जाए।
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