न्याय के रोड़े हटाएं
सर्वोच्च अदालत की हीरक जयंती के अवसर पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लंबी छुट्टियों व स्थगन की संस्कृति का मसला उठाया।
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उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में महिलाओं के बढ़ते प्रतिनिधित्व की तारीफ की और समाज के विभिन्न वगरे को कानूनी पेशे में शामिल होने का आह्वान किया। युवा आबादी के पेशेवर जीवन में सफल होने का आत्मविश्वास प्रेरणादायक है। न्यायपालिका को प्रभावित करने वाले मुद्दों, जैसे लंबित मामलों, पुरानी प्रक्रियाओं व स्थगन की संस्कृति के समाधान पर जोर दिया।
प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कानूनों के आधुनिकीकरण व सरकारी कर्मचारियों के प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण की बात की। उन्होंने भरोसेमंद न्यायिक प्रणाली बनाने व अनावश्यक बोझ कम करने की बात की।
मोदी ने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने भारत के जीवंत लोकतंत्र को मजबूत किया है और आज जो कानून बन रहे हैं, वे कल के उज्ज्वल भारत को मजबूती प्रदान करेंगे। न्याय में सुमगता को हर भारतीय का अधिकार बताते हुए उन्होंने डिजिटल निर्णयों की उपलब्धता व अदलतों के फैसलों की स्थानीय भाषा में अनुवाद की परियोजना की तारीफ भी की। यह कहना गलत नहीं है कि अदालतों पर भारी बोझ है। मगर जैसा कि सीजेआई ने कहा सरकार को छुट्टियों को लेकर गंभीर निर्णय लेने होंगे।
अदालतों की कार्रवाई को शिफ्टों में चालू करने जैसी व्यवस्था देनी होगी, साथ ही तारीखों को आगे बढ़ाते रहने की प्रक्रिया पर सख्ती होनी जरूरी है। दिसम्बर में कानून मंत्री अजरुनराम मेघवाल ने लोक सभा में बताया था कि पचीस हाई कोटरे में 61.6 लाख मामले लंबित हैं, जबकि निचली अदालतों के 4.4 लंबित मामलों को मिलाकर कुल पांच करोड़ मामले देश में लंबित हैं। इनके लिए जजों की नियुक्तियों के साथ ही आधारभूत संरचना को सशक्त बनाना भी जरूरी है।
देश के लोग जैसे-जैसे शिक्षित व जागरूक हो रहे हैं, उनका न्याय व्यवस्था पर विश्वास बढ़ रहा है। वे छोटे-छोटे विवादों के लिए भी अदालत आने में संकोच नहीं करते। मगर फौरी न्याय न मिलने या अदालतों के चक्कर काटते रहने के कारण झगड़े/विवाद अधर में ही रह जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकार और न्याय व्यवस्था इन गंभीर सवालों पर सवाल करने की बजाय बुनियादी निवारणों पर तवज्जो दे ताकि उचित न्याय पाने से जनता वंचित न रह सके।
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