वैज्ञानिकों को सैल्यूट

Last Updated 28 Aug 2023 01:40:44 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चंद्र मिशन की सफलता पर इसरो की सराहना करते हुए कहा है कि चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद पर जिस स्थान पर (टचडाउन प्वाइंट) उतरा है, उसका नाम ‘शिवशक्ति स्थल’ रखा जाएगा। 23 अगस्त की तारीख को ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।


वैज्ञानिकों को सैल्यूट

पीएम ने घोषणा की चंद्रयान-2 के टचडाउन प्वाइंट को ‘तिरंगा प्वाइंट’ कहा जाएगा। सफल चंद्र मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों से मिलने मोदी शनिवार सुबह ग्रीस की राजधानी एथेंस से सीधे बेंगलुरु पहुंचे। इसरो मुख्यालय में वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए चंद्रयान-3 के टचडाउन प्वाइंट का नाम शिवशक्ति रखने की घोषणा की। शिव में मानवता के कल्याण का संकल्प है, और शक्ति हमें उन संकल्पों को पूरा करने की ताकत देती है।

टचडाउन प्वाइंट का नामकरण करने की वैज्ञानिक परंपरा है, इसलिए भारत ने उस चंद्र क्षेत्र का नामकरण करने का फैसला किया है, जहां हमारा चंद्रयान-3 उतरा था। शिवशक्ति स्थल हिमालय से कन्याकुमारी तक जुड़ाव का अहसास भी कराता है। चंद्रयान-3 की सफलता गौरव का सबब है। यह मौका है कि संकल्पबद्ध होने का कि सफलता से उपजे उत्साह का उपयोग हम वैज्ञानिक सोच बढ़ाने में करेंगे। इस बीच, कुछ लोग इस बात पर नाखुश हैं कि इस सफलता का श्रेय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के देने की बजाय सत्ताधारी पार्टी स्वयं ले रही है। बेशक, यह सफलता कोई हालिया प्रयासों का परिणाम नहीं है। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय से ही इस दिशा में प्रयास शुरू हो गए थे।

लेकिन यह भी कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जय विज्ञान, जय अनुसंधान का नारा लगाकर जाहिर कर दिया था कि वे विज्ञान और अनुसंधान को खासी तवज्जो देने वाले हैं। बेशक, पहले की सरकारों ने भी इस दिशा में सराहनीय कार्य किया है, लेकिन मोदी सरकार ने विज्ञान और अनुसंधान को प्राथमिकता पर रखा है, और इस दिशा में सक्रियता बढ़ाई। इस क्षेत्र में बजटीय समर्थन देने के साथ ही अच्छे परिणाम लाने की गरज से निजी क्षेत्र की भी मदद लेने में गुरेज नहीं किया।

आज देश उस मुकाम पर आ खड़ा हुआ है, जब संकल्पबद्ध हुआ जा सकता है कि नई पीढ़ी को भारत के शास्रें में वर्णित खगोलीय सूत्रों को वैज्ञानिक ढंग से सिद्ध करने और उनका नए सिरे से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसलिए कि भारत के पास वैज्ञानिक ज्ञान का जो खजाना है, वह गुलामी के लंबे कालखंड में दब गया था। बेशक, यह वैज्ञानिकों को सैल्यूट करने का समय है।



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