आनंद मोहन की रिहाई पर अपने-अपने तर्क
बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) के नेतृत्व वाली भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार डाले गए आईएएस जी कृष्णैया (IAS G Krishaiya) की पत्नी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) चली गई हैं।
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बिहार जेल नियमावली में संशोधन करके आनंद मोहन को गुरुवार को सहरसा जेल से रिहा कर दिया था। दिवंगत अधिकारी की पत्नी की दलील है कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद को सुनाई गई उम्रकैद की सजा पूरे जीवनकाल के लिए है। उन्होंने यह भी कहा है कि जब मृत्युदंड की जगह उम्रकैद दी जाती है तो उसका सख्ती से पालन करना होता है।
आनंद मोहन की रिहाई के बाद आम जन से लेकर विपक्ष व अन्य जाने माने लोगों ने इस पर हो रही राजनीति को लेकर इसी तरह के सवाल किए। नीतीश सरकार के महागठबंधन के भीतर ही इस मामले में फूट पड़ चुकी है। कृष्णैया की बेटी पद्मा तो मीडिया के समक्ष रो पड़ी, उन्होंने कहा सरकार को खुद इस फैसले का पुनर्विचार करना चाहिए।
बाहुबली की पत्नी पूर्व सांसद लवली आनंद (Lovely Anand) ने यह कह कर कि कृष्णैया ईमानदार अधिकारी थे। हमें भी उनकी हत्या का दुख है, जनता को भावनात्मक संदेश देने की कोशिश भी की। लवली आनंद का कहना कि यह घटना मोहन के सामने होती तो वे कभी ऐसा नहीं होने देते। हम लोग जान पर खेल कर भी उनकी जान बचा लेते, मृतक के परिवार को सांत्वना नहीं दे पाया।
आनंद को निर्दोष बता कर बाहुबली की पत्नी ने स्पष्टीकरण दिया कि हम लोगों ने अदालत के आदेश का पालन किया। जिस तरह भगवान राम चौदह वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, उसी तरह मोहन बाहर आ रहे हैं।
बावजूद इसके उमा देवी ने अपना पक्ष रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को इस तरह की चीजों को बढ़ावा नहीं देने की बात की। उन्होंने कहा, जनता भी इस रिहाई का विरोध करेगी। राजनीति के रंग में रंगे अन्य सजायाफ्ता बाहुबलियों को भी इस रिहाई से नया मार्ग नजर आ रहा है।
हालांकि लगातार खबरें आ रही हैं कि रसूखदार जेल के भीतर भी सुख-सुविधाओं की भरपूर व्यवस्था कर लेते हैं। न्यायालयों की सख्ती व कड़ी टिप्पणियों के बावजूद राज्य सरकारें इस मामले में कोताही करने से बाज नहीं आतीं। उन्हें वोट बैंक के अलावा किसी की फिक्र नहीं होतीं। जान बूझकर न्याय व्यवस्था में सुराख करती रहती हैं। कातिल हो या मृतक, दोनों की जीवनसाथी अपना पत्नी धर्म निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। एक सजा जारी रखने पर अड़ी है तो दूसरी सजा माफ कराने पर। हालांकि आखिरी फैसला तो सबसे बड़ी अदालत ही देगी, जिस पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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