पश्चिम की कोप दृष्टि

Last Updated 28 Feb 2023 01:54:29 PM IST

भारत की अध्यक्षता में हो रही जी-20 की शिखर वार्ता में विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों के बीच यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद गहरे होते जा रहे हैं।


पश्चिम की कोप दृष्टि

24-25 फरवरी को बेंगलुरू में जी-20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गर्वनरों की बैठक हुई थी। जी-20 की भारत में होने वाली इस पहली बैठक के अंत में संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका। जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते भारत की ओर से केवल एक अध्यक्षीय बयान ही जारी हो सका। अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी सहित करीब 18 देशों के वित्त मंत्री इस बात पर अड़े रहे कि बैठक के अंत में जारी होने वाले संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए रूस की निंदा की जाए। लेकिन रूस और चीन के प्रतिनिधिमंडल इस बात के लिए राजी नहीं हुए और अंतत: इस मसले पर जी-20 समूह के देशों के बीच आम सहमति नहीं बन पाई।

हालांकि भारत ने बीच का रास्ता निकालते हुए सुझाव दिया था कि संयुक्त वक्तव्य में यूक्रेन पर आक्रमण की बजाय यूक्रेन ‘संघषर्’ या ‘संकट’ जैसी शब्दावली का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन रूस और चीन के प्रतिनिधिमंडल ने भारत के इस सुझाव को भी खारिज कर दिया। कहा जा सकता है कि भारत के लिए जी-20 की बैठकों के दौरान मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे शब्दों में मार्च के पहले सप्ताह में नई दिल्ली में जी-20 की विदेश मंत्रियों की होने वाली बैठक में भी यूक्रेन युद्ध की काली छाया पड़ने की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। रूस ने आरोप लगाया है कि उसके प्रति पश्चिमी देशों के टकरावपूर्ण रुख के चलते वित्त मंत्रियों की बैठक में संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका।

रूस के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए भारत की अध्यक्षता की रचनात्मक भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा कि सभी देशों के हितों एवं रुखों पर निष्पक्षता से विचार करने की कोशिश की गई। बेंगलुरू में आयोजित इस बैठक में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय व्यवस्था और क्रिप्टो करेंसी को नियमित करने पर भी चर्चा हुई। भारत ने बैठक में विचार करने के लिए जो एजेंडा बनाया था, उस पर जी-20 समूह के सदस्य देशों ने पूरा समर्थन दिया। वित्त मंत्रियों की इस बैठक का मुख्य एजेंडा विश्व में आर्थिक संकट से निपटने, विशेषकर कर्ज की समस्या पर केंद्रित थी। अच्छी बात यह रही कि घाना, इथोपिया, जांबिया और श्रीलंका जैसे गरीब देशों को कर्ज देने पर समूह के सभी देश तैयार हो गए।



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