बुलडोजर पर ब्रेक
दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर डीडीए को मंगलवार को दिल्ली के महरौली में पांच दिनों से चल रहे अपने बुलडोजर को रोकना पड़ा।
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जस्टिस मनप्रीत सिंह अरोड़ा ने यह आदेश उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया जिनमें गांव लाडो सराय में महरौली पुरातत्व पार्क के पास डीडीए के तोड़फोड़ अभियान का विरोध किया गया था। कोर्ट ने कहा कि संबंधित जमीन और संपत्तियों से जुड़े कई तरह के विवाद हैं। कोर्ट ने डीडीए से इन संपत्तियों से जुड़ी डिमार्केशन रिपोर्ट तलब करते हुए कहा कि जब तक सीमांकन का मुद्दा हल नहीं होता तब तक तोड़फोड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती।
राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में अवैध निर्माण और कच्ची बस्तियां बसना कोई आज की समस्या नहीं है। अवैध बसावट व निर्माण करने वाले, वह भी उस जमीन पर जिसका न तो उनके पास मालिकाना होता और जो पूरी तरह से सरकारी जमीन का अधिक्रमण होता है, स्थानीय निकाय और संबद्ध सरकारी विभाग के अफसरों और स्थानीय नेताओं की मिलीभगत से बड़ी सहजता से निर्माण करते हैं।
जब अवैध निर्माण हो रहा होता है, तब अफसर आंखें मूंदे रहते हैं। महरौली में भी साफ दिख रहा है कि डीडीए के अधिकारियों की मिलीभगत से बिल्डरों ने अवैध निर्माण करके मोटी रकम बनाई। खून-पसीने की कमाई से उनसे अपने आशियाने खरीदने वाले कार्रवाई का दंश झेलने को विवश हैं, और जिन्हें दंडित किया जाना चाहिए वे गायब हो चुके हैं। बिल्डर सरकारी जमीन पर कब्जा करके फ्लैट बना रहे थे और डीडीए का पूरा तंत्र खामोश था, तो उनका करा-धरा निम्म मध्यम वर्ग के लोग क्यों भोगें। उन्हें डीडीए, नगर निगम के बिल्डिंग डिपार्टमेंट और वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों के भ्रष्ट कृत्यों की सजा क्यों मिले। यहां अवैध निर्माण कोई हाल-फिलहाल नहीं किए गए बल्कि बीते पचास साल से जारी थे।
वन विभाग की जमीन पर थोड़े-थोड़े अंतराल पर डीडीए की बाउंड्री वॉल को बढ़ाते हुए अतिक्रमण किया गया। फिर वहां फ्लैट बना दिए गए। आज यहां भ्रष्टाचार और मिलीभगत से सैकड़ों अपार्टमेंट्स बन गए हैं। मजे की बात यह कि बीच-बीच में अवैध निर्माण के नाम पर नोटिस जारी करने की कार्रवाई भी जब-तब होती रही। जरूरी है कि इस पूरे घपले की जांच कराई जाए और दोषी पाए जाने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो।
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