अफगान पर अहम बैठक
अफगानिस्तान नि:संदेह भारत के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। यह इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के साथ भारत को बैठक करनी पड़ी।
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अफगानिस्तान के मसले पर यह तीसरी ऐसी मीटिंग हो रही है और पहली बार भारत इसकी अध्यक्षता कर रहा है। चर्चा में रूस-ईरान सहित सात देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मौजूद थे। बैठक में 5 मध्य एशियाई देशों-कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान-के सुरक्षा अधिकारियों ने भी शिरकत की। बैठक की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की।
एनएसए लेवल की यह तीसरी बैठक भारत की अध्यक्षता में हो रही है। बैठक को ‘दिल्ली डायलॉग’ नाम दिया गया है। खास बात यह है कि पाकिस्तान और चीन ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार किया। बैठक के न केवल अफगानिस्तान के लोगों के लिए, बल्कि उसके पड़ोसियों और क्षेत्र के लिए भी महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं। खासकर भारत के लिए अफगानिस्तान में शांति जरूर है।
जब तक वहां स्थायित्व और संवेदनशील सोच वाले लोग सत्ता में नहीं आएंगे, तब तक पड़ोसी देशों में अमन की गुंजाइश नहीं बनेगी। शायद यही सोचकर भारत ने अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्कों को एक मंच पर जगह दी। अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान आतंकवादियों का कब्जा होने के बाद से ही कश्मीर में आतंकवादी वारदात में बढ़ोतरी हुई है, भारत इस बात को लेकर हमेशा सतर्क रहा है कि तालिबान के सत्तासीन होने के बाद पाकिस्तान भारत में आतंकवाद को हवा देगा। कुछ हद तक भारत का अंदेशा सच भी साबित हुआ है।
कश्मीर में जिस तरह से पाकिस्तान परस्त आतंकी गुट ‘टारगेट किलिंग’ कर घाटी में दहशत फैलाने का काम कर रहे हैं, वह वाकई चिंता की बात है। भारत हमेशा से अपने पड़ोसी मुल्कों से दोस्ताना व्यवहार को तरजीह देता रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में विकास के कई काम कराए हैं। इसलिए वहां की स्थिति से जुड़े मुद्दों का संजीदगी से हल तलाशना हर किसी के लिए आवश्यक है। भारत चाहता है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए कतई न हो। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में उग्रवाद और कट्टरपंथ का फैलाव, ड्रग्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन बढ़ा है, लिहाजा इन सब मसलों का सर्वमान्य हल तलाशना निहायत जरूरी है।
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