जाति-बखान पर रोक
लखनऊ में गाड़ियों पर जातिसूचक शब्द लिखवाने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है।
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गौरतलब है कि ऐसे तमाम वाहन सड़कों पर दौड़ते दिखलाई पड़ते हैं, जिन पर राजपूत, ब्राह्मण, यादव, क्षत्रिय, गुर्जर, जाट, नम्बरदार, प्रधान आदि शब्द लिखे दिखते हैं। बीते रविवार को प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दुर्गापुरी इलाके में जातिसूचक शब्द लिखे वाहन का चालान काटा गया। इस तरह की अनियमितता में यह पहला चालान है।
कानपुर नम्बर की गाड़ी पर ‘सक्सेना जी’ लिखा हुआ था। लखनऊ की नाका थाना पुलिस ने उसके खिलाफ कार्रवाई की। वैसे, ऐसी कार्रवाई की जरूरत लखनऊ में ही नहीं, बल्कि समूचे देश में है। जातिसूचक शब्द लिखवाने का ‘चलन’ किसी एक जगह तक सीमित नहीं है, बल्कि समूचा देश इसकी गिरफ्त में है। कार्रवाई इसलिए आरंभ हो सकी कि महाराष्ट्र के शिक्षक हषर्ल प्रभु ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यालय में खत लिख भेजा था कि उत्तर प्रदेश में ऐसे वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं, जिन पर जातिसूचक शब्द लिखे होते हैं।
प्रभु के अनुसार इस प्रकार का चलन बंद किया जाना चाहिए क्योंकि यह सामाजिक ताने बाने के लिए खतरा है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह शिकायत प्रदेश सरकार को प्रेषित कर दी। नतीजतन, अपर परिवहन आयुक्त ने आदेश जारी किया। यह अनियमितता पाए जाने वाले वाहनों के खिलाफ अभियान चलाने को कहा। अब लखनऊ पुलिस ने धारा 177 के तहत कार्रवाई शुरू कर दी है, जिसके तहत चालान या गाड़ी जब्ती की कार्रवाई की जा रही है, लेकिन सवाल उठता है कि लोगों को अपने वाहनों पर अपनी जाति, कुलनाम आदि लिखने की ललक क्यों उठती है? दरअसल, पहचान के संकट से घिरे लोग ऐसा करते हैं।
अतीतजीवी ज्यादा होते हैं। अपने वर्तमान में खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाने वाले अपनी जाति के गौरवशाली अतीत या दबंगता का बखान करने में ही त्राण पाते हैं। ऐसा करके उन्हें वर्तमान की विफलताओं और सामान्य सा जीवन जीने की ‘विवशता’ से छुटकारा मिलता महसूस होता है। कई बार स्थानीय रूप से बहुलता वाले समाज ऐसा करते हैं ताकि रोडरेज का शिकार न बनने पाए। उन्हें जातीय शब्द लिखकर यह समस्या काफूर होती लगती है। बहरहाल, यह एक अच्छी पहल है। खोखले या थोथे आचरण से न केवल राहत दिलाएगी बल्कि समाज को एकजुट भी करेगी।
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