वैक्सीन का चुनाव
कोविड-19 के लगातार खूनी पंजा मारने के बीच आमजन के लिए अच्छी खबर है। ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन ने भारत की उम्मीदों को पर दिए हैं।
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खास बात यह है कि 70 फीसद असर के बावजूद भारत के लिए यह टीका बेहतर माना गया है। जबकि फाइजर और माडर्ना की वैक्सीन के 95 फीसद असरदार होने का दावा किया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि सबसे जरूरी सुरक्षा है और इस मापदंड पर ऑक्सफोर्ड ने फाइजर और माडर्ना को मात दे दी है। एक और अहम वजह ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का पुरानी तकनीक का होना है, जिसे आसानी से स्टोर और वितरित किया जा सकता है। वहीं फाइजर और माडर्ना का इस्तेमाल पहली बार किया जाएगा।
फिलहाल जो खबर है, उसके मुताबिक भारत में अभी तीन वैक्सीन का ट्रायल तीसरे फेज में है। इनमें आईसीएमआर और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और दूसरा जैडस कैडेला है। किसी भी टीके में देखने वाली बात यह होती है कि उसका किसी भी तरह मरीज पर साइड इफेक्ट तो नहीं है। दूसरा उसकी तकनीक कितनी सुदृढ़ है, वह कितनी किफायती है और उसे लाने-ले जाने में किसी तरह की कोई अड़चन तो नहीं होगी? अगर कोई वैक्सीन इन सब स्तर पर खरी उतरती है तो उसे अमल में लाना किसी भी सरकार और विशेषज्ञों के लिए आसान होता है। ज्ञातव्य है कि वैश्विक तौर पर भी रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी समेत कई और देश कोरोना वैक्सीन को लेकर संजीदा हैं। कई देशों की वैक्सीन तो ट्रायल के अंतिम स्टेज में है।
दरअसल, सरकार को अब अपनी तैयारियों को लेकर भी गंभीर होने की जरूरत है। इतनी बड़ी आबादी को पारदर्शी तरीके से सुरक्षित कैसे टीका लगाया जाएगा, इस बारे में अंतिम रूपरेखा तय होनी चाहिए। क्योंकि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रेजेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड की पहली खेप जनवरी के आखिर में भारत को मिल सकती है। देखना यह भी होगा कि भारत में इसे सरकार बिक्री के लिए रखेगी या मुफ्त में वितरण करेगी। हां, इस बात का ध्यान निसंदेह रखने की जरूरत है कि यह गलत हाथों में न पड़े और इसका नकल करने वालों पर भी सरकारी की पैनी नजर हो। हालांकि जब तक वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो जाता तब तक सभी लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सैनिटाइजर का उपयोग और हमेशा हाथ साबुन से धोने के नियमों का ईमानदारी से पालन करना होगा। इसमें लापरवाही से काम बिगड़ भी सकता है।
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