और मजबूत हुआ रिश्ता
अमेरिका के लिए भारत कितना अहमियत रखता है, यह बात दोनों देशों के बीच बीते मंगलवार को नई दिल्ली में संपन्न टू प्लस टू की बैठक ने रेखांकित की है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के एक सप्ताह पहले कोरोना महामारी के जोखिम को नजरअंदाज करके वहां के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री भारत आए और दोनों देशों ने रक्षा संबंधी महत्त्वपूर्ण बेका (बेसिक एक्सचेंज एंड कोआपरेशन फॉर जियोस्पेशियल कोऑपरेशन) समझौते पर हस्ताक्षर किए।
पिछले दो दशकों में दोनों देशों के बीच यह चौथा रक्षा सहयोग समझौता है। इस समझौते ने टू प्लस टू बैठक को नया आधार दिया है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की करीब एक लाख सैनिक टुकड़ियों का जमावड़ा है। इस बात की कम ही गुंजाइश है कि भीषण शीत मौसम में भी यह सैनिक जमावड़ा कम होगा। इस पृष्ठभूमि में बेका जैसे रक्षा समझौते को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
इस समझौते से उपग्रह और दूरसंवेदी डाटा भारत को अमेरिका उपलब्ध कराएगा। भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान में मिसाइलों और सैनिकों की जो तैनाती होगी उससे संबंधित उपकरणों की लोकेशन की निश्चित सूचना भारत को मिल सकेगी। इसके जरिए भारत को परंपरागत युद्ध के साथ-साथ साइबर युद्ध में भी बढ़त हासिल होगी। शत्रु देश की मिसाइल प्रणाली सहित सूचना आदान-प्रदान के तंत्र को जाम किया जा सकेगा। अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य संगठन नाटो के बाहर भारत एकमात्र देश है, जिसे अमेरिका सैन्य उपयोग में काम आने वाली यह अद्यतन प्रणाली उपलब्ध कराएगा। इस समझौते से चीन और पाकिस्तान के सैनिक प्रतिष्ठानों में खलबली मची हुई है।
गौर करने वाली बात है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रशासनिक बदलाव की पूरी संभावना के बावजूद इस बैठक को टाला नहीं गया। हालांकि टू प्लस टू बैठक में अनेक वैश्विक मुद्दों पर दोनों देशों की अलग-अलग राय अभी कायम हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि साझा प्रेस वार्ता में अमेरिका के मंत्रियों ने जहां चीन का सीधे रूप से उल्लेख किया वहीं राजनाथ सिंह और एस. जयशंकर ने चीन का नाम नहीं लिया। भारत और अमेरिका के संबंधों में घनिष्ठता और गहराई आने के साथ ही इतनी परिपक्वता भी विकसित हुई है कि दोनों में से कोई भी देश अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है।
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