जब तक दवाई नहीं..
त्योहारों के मौसम से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह चेतावनी कि लॉकडाउन भले ही हट गया है, लेकिन कोरोना का वायरस नहीं गया है, इसलिए लोग असावधान नहीं रह सकते, और इस समय उनका यह नारा कि जब तक ‘दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ पूरी तरह मौजूं हैं।
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इधर जब से लॉकडाउन के नियम शिथिल हुए हैं, तब से यह लगातार देखने को मिल रहा है कि लोगों ने अपने सुरक्षा उपायों को ढीला कर दिया है। हाट-बाजार हो या राजनीतिक दलों का धरना-प्रदर्शन या धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन, इन सबमें सामाजिक दूरी के नियमों की धज्जियां उड़ती देखी जा सकती हैं।
त्योहार के मौसम में जब पूजा पंडालों और बाजारों में लोग बड़ी संख्या में भागीदारी करते हैं, तो उस समय सुरक्षा के उपाय जाने-अनजाने शिथिल हो जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा है कि एक कठिन समय से निकल कर हम आगे बढ़ रहे हैं, थोड़ी सी लापरवाही हमारी गति को रोक सकती है, हमारी खुशियों को धूमिल कर सकती है। जीवन की जिम्मेदारियों को निभाना और सतर्कता, ये दोनों साथ-साथ चलेंगे तभी जीवन में खुशियां बनी रहेंगी। दो गज दूरी, समय-समय पर साबुन से हाथ धोने और मास्क का ध्यान रखने की बात कहने के साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और यूरोप में कोरोना के मामले कम हो रहे थे लेकिन अचानक से फिर बढ़ने लगे। हैरानी इस बात की है कि प्रधानमंत्री के इस सामयिक वक्तव्य की भी आलोचना की जा रही है। किसी ने कहा कि अमेरिका और यूरोप के देशों से तुलना करने में प्रधानमंत्री ने गलत आंकड़े प्रस्तुत किए तो किसी ने कहा कि प्रधानमंत्री को बेरोजगारी और कमजोर हुई अर्थव्यवस्था के बारे में देश को बताना चाहिए था।
कुछ अर्थशास्त्रियों ने कहा कि हम प्रधानमंत्री से आर्थिक पैकेज की अपेक्षा कर रहे थे। ऐसे लोगों से सिर्फ यही कहा जा सकता है कि हर विषय पर बात नहीं की जा सकती। त्योहार के मौसम में प्रधानमंत्री की तकनीकी गलतियां निकालने के बजाय उनके आशय को सदाश्यता और गंभीरता से लिया जाना चाहिए और पलट बयानबाजी से कोरोना से उत्पन्न स्थिति की गंभीरता को कम नहीं किया जाना चाहिए। केरल में ओणम के त्योहार के दौरान कोरोना के मामले बढ़ जाने से त्योहारों से पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वक्तव्य का महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
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