सुधार की जरूरत
संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष पूरे होने पर इस वैश्विक मंच के सांगठनिक ढांचे में सुधार का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है।
सुधार की जरूरत |
एक बात तो स्पष्ट है कि इतनी पुरानी यह विश्व संस्था जर्जर होती जा रही है और इस पुरानी संरचना से नई चुनौतियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस वैश्विक मंच के 75वें वषर्गांठ के मौके पर बुलाई गई महासभा की उच्च स्तरीय बैठक में कहा कि व्यापक सुधारों के अभाव में संयुक्त राष्ट्र पर भरोसे की कमी का संकट मंडरा रहा है।
उन्होंने बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता में जोर दिया जो मौजूदा वास्तविकताओं को दर्शाये, सभी पक्षकारों की बात रखे, समकालीन चुनौतियों का समाधान दे और मानव कल्याण पर केंद्रित हो। यह बात गौर करने वाली है कि द्वितीय विश्व युद्ध के संकट के दौर में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई थी। इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस और सोवियत संघ (अब रूस) द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता देश थे। इन देशों के अलावा चीन को संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख निकाय सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया गया।
इन पांचों देशों को वीटो पावर प्राप्त है, जिसके जरिये इनमें से कोई देश सुरक्षा परिषद में लाए गए किसी भी प्रस्ताव को खारिज कर सकते हैं। इस विशेषाधिकार के चलते 193 सदस्यों वाले संयुक्त राष्ट्र में इन पांचों देशों का वर्चस्व बना हुआ है। इन 75 सालों में कई बार ऐसे मौके आए हैं जब वीटो पावर का गलत इस्तेमाल किया गया। संयुक्त राष्ट्र के मामलों के जानकारों का कहना है कि जब इस विश्व संस्था की स्थापना की गई थी उस समय की परिस्थितियां आज से भिन्न थी। लिहाजा तब और आज की परिस्थितियों की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए इसमें व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है।
कोराना महामारी के दौर में संयुक्त राष्ट्र का विश्व स्वास्थ्य संगठन की केंद्रीय भूमिका हो सकती थी, लेकिन वह अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह करने में पूरी तरह असफल रहा है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों का लगातार समर्थन किया है। विश्व में शांति स्थापित करने के अभियानों में भारत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला और विश्व महाशक्ति के रूप में उभरने वाला भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलनी ही चाहिए।
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