पीएम केयर्स फंड
कोरोना संकट के दौरान गठित पीएम केयर्स फंड पर उठे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आखिरकार आ गया। कुछ महीनों से हवा में सवाल तैर रहा था कि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के रहते हुए पीएम केयर्स फंड के गठन की जरूरत क्यों पड़ गई?
![]() पीएम केयर्स फंड |
यहां तक कहा गया कि पीएम केयर्स फंड के पक्ष में नियमों में तोड़-मरोड़ किया गया ताकि राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में व्यक्तिगत और कॉरपोरेट घरानों से फंड न आ सके। सुप्रीम कोर्ट के सामने कई सवाल थे, लेकिन उनमें जन हित का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सवाल यही था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि नियमों में कोई तोड़-मरोड़ नहीं किया गया है। यही नहीं, कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में दान कर सकता है। यह जिस नियम के तहत किया जाएगा, वह कोरोना के आने के काफी पहले ही बनाया जा चुका था। नये दिशानिर्देश 2015-16 में ही बनाए जा चुके थे, जबकि पीएम केयर्स फंड का गठन 2020 में किया गया था। ऐसे में कहना कि पीएम केयर्स फंड को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों में तोड़-मरोड़ किया गया, बिल्कुल बेतुकी और भ्रामक बात है।
चूंकि पीएम केयर्स फंड एक पब्लिक चैरिटेबल टस्ट है और सरकार से कोई बजटीय सहायता नहीं लेता, इसलिए इसके ट्रस्टियों के विवेक पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य ढांचा खड़ा करने और फंड की जुगाड़ के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत पैदा कर दी थी। इसलिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में इसका गठन कर इस दिशा में कदम उठाया गया। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स की राशि को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष में हस्तांतरित करने से संबंधित याचिका खारिज कर दी।
इसके बावजूद अगर राजनीतिक दलों के बयान पर गौर करें, तो यही प्रतीत होता है कि विवाद समाप्त होता नहीं दिख रहा है। इस पर कांग्रेस और भाजपा पारदर्शिता को लेकर आमने-सामने आ चुके हैं। अच्छा होता कि देश कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता दिखाता वरना राष्ट्र का मनोबल कमजोर होता है। संतोष की बात है कि जिस पीएम केयर्स फंड पर विवाद खड़ा किया गया, उससे मिली राशि का कोरोना के खिलाफ लड़ाई में विभिन्न मदों में इस्तेमाल किया जा रहा है। अब तक इस फंड से वेंटिलेटर, प्रवासी श्रमिकों और वैक्सीन बनाने के लिए 3100 करोड़ रु पये खर्च किए जा चुके हैं।
Tweet![]() |