एक युग का अंत
अंतहीन अटकलों को विराम देते हुए भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे सफलतम कप्तान रहे और सर्वश्रेष्ठ फिनिशर महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया।
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उनके साथ ही सुरेश रैना ने भी अपने संन्यास का ऐलान कर दिया। धोनी जिस तरह मैदान में अपने फैसलों से विपक्षी टीमों यहां तक कि अपनी टीम के सदस्यों को चौंकाते थे, ठीक उसी तरह अपने संन्यास का निर्णय लेकर उन्होेंने समस्त खेल जगत को स्तब्ध कर दिया। वैसे पिछले एक साल से उनके भविष्य को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही थी, मगर 15 अगस्त की शाम को आईपीएल की फ्रेंचाइजी टीम चेन्नई सुपर किंग्स की प्रैक्टिस से आने के बाद उन्होंने सारी कयासबाजी पर पूर्ण विराम लगा दिया।
वह हालांकि आईपीएल में खेलेंगे, जो 19 सितम्बर से यूएई में आयोजित की जा रही है, मगर नीली जर्सी में नंबर 7 का जलवा अब दर्शकों को देखने को नहीं मिलेगा। सूझबूझ भरी कप्तानी और मैच को अंजाम तक ले जाने की कला के साथ भारतीय क्रिकेट के इतिहास के कई सुनहरे अध्याय लिखने वाले धोनी के इस फैसले के साथ ही क्रिकेट के एक युग का भी अंत हो गया।
भारतीय क्रिकेट टीम में आक्रामकता लाने का श्रेय अगर सौरव गांगुली को जाता है तो चुपचाप और बेहद ठंडे दिमाग से जीत की रणनीति बनाने का श्रेय निश्चित तौर पर धोनी के हिस्से आता है। इस मामले में उनकी तुलना ऑस्ट्रेलिया के महानतम खिलाड़ी स्टीव वॉ से की जा सकती है। वॉ भी मैदान में शांति और चपलता से अपनी चमक बिखरते थे। सफलता मिलने के बावजूद अपने पैर जमीं पर रखना और असफलता को सफलता की कुंजी बनाने का माद्दा गिने-चुने और विरले लोगों को आता है।
धोनी उन्हीं में से थे। निश्चित रूप से धोनी की कमी खलेगी और दर्शकों को लंबा वक्त इससे उबरने में लगेगा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 16 साल दे चुके धोनी ने टेस्ट से दिसम्बर 2015 में ही सन्यास ले लिया था। उन्होंने 2019 र्वल्ड कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ आखिरी मैच खेला था। हालांकि नीली जर्सी में न सही क्रिकेट के दीवाने उन्हें पीली जर्सी में देखकर जरूर रोमांचित होंगे। जोखिम भरे फैसले लेने वाला और हारी हुई बाजी को जीतने वाला शायद ही कोई दूसरा धोनी पैदा होगा। नवोदित खिलाड़ियों को उनसे काफी कुछ सीखने की जरूरत है।
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