वार्ता के साथ कड़ा रुख
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़पों के बाद दोनों देशों की ओर से तनाव शिथिल करने की कोशिशें जारी हैं।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की ओर से देशवासियों को भरोसा दिलाया गया है कि देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। भारतीय सेना के लिए यह प्रेरणा वाक्य है। इसीलिए दोनों देश की सेनाओं के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता में भारतीय वार्ताकारों ने दो टूक कह दिया कि चीनी सैनिक अपनी सीमा पर वापस लौट जाएं।
अर्थात वास्तविक नियंत्रण रेखा (एएलसी) पर सैनिकों की तैनाती की स्थिति वैसी होनी चाहिए जैसी कि 5 मई के पहले थी। भारतीय वार्ताकारों के इस कड़े रुख का साफ संदेश है कि चीन अपनी गलत मंशा से बाज आए। अगर चीनी सैनिक भारतीय सीमा का अतिक्रमण करने की कोशिश करता है तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। इसी रणनीति के तहत भारत ने सेना को पूरी छूट दे दी है कि वह परिस्थितियों के अनुरूप जो जरूरी हो, वह कार्रवाई करे।
प्रधानमंत्री मोदी ने यदि एक ओर चीन के सर्वोच्च नेता शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक शिखर वार्ताओं के जरिये संबंधों को मधुर बनाने की कोशिशें कीं तो दूसरी ओर उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे के विकास के कार्यों को प्राथमिकता भी दी है। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव के बीच केंद्र सरकार ने भारत-चीन सीमा पर चल रही सड़क परियोजनाओं की समीक्षा की और उनमें से 32 परियोजनाओं के काम में तेजी लाने का फैसला लिया गया। सीमा पर जारी तनाव के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस की यात्रा पर हैं। भारत किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए लड़ाकू विमानों की नई खेप की आपूर्ति चाहता है।
उसकी कोशिश है कि रूस से पनडुब्बियों और युद्धक टैंक की आपूर्ति भी जल्द की जाए। हालांकि वर्तमान विश्व व्यवस्था भारत और चीन के बीच किसी बड़े युद्ध की आशंका को नकारता है। क्योंकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई शिखर वार्ताओं की उपलब्धियों को खारिज करने का जोखिम उठा नहीं सकते। यह जरूर है कि भारत चीन के संबंध पटरी पर से उतर गए हैं, लेकिन अपेक्षा की जाती है कि ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन जैसे वैश्विक मंच के सहयोग और राष्ट्रपति पुतिन की सक्रिय मध्यस्थता दोनों देशों के बीच अविास और शत्रुता को कम करेगी।
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