नेपाल की करतूत
भारत के साथ पड़ोसी देश नेपाल का सीमा विवाद अब ज्यादा कसैला होने लगा है।
नेपाल की करतूत |
नेपाल सरकार ने रविवार को संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य देश के मानचित्र में बदलाव करना है। नेपाल सरकार के इस कदम से यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि नेपाल भारत के साथ संबंधों को लेकर कितना आक्रामक है। खास बात यह है कि नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने विधेयक का समर्थन किया है। मानचित्र में संशोधन कर इसे संविधान की तीसरी अनुसूची में शामिल करने को कहा गया है। संशोधित विधेयक को संसद से मंजूरी मिलते ही नये मानचित्र का इस्तेमाल आधिकारिक दस्तावेजों में किया जाएगा। नेपाल ने हाल ही में देश का संशोधित राजनीतिक एवं प्रशासनिक मानचित्र जारी किया था, जिसमें उसने सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण इलाकों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा पर दावा किया था। भारत की ओर से लिपुलेख इलाके में सीमा सड़क के उद्घाटन के दस दिनों बाद नेपाल सरकार ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था।
नेपाल सरकार की इस पहल का भारत सरकार ने तीखा विरोध किया था। दरअसल, छह महीने पहले भारत ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दिखाया गया था। इस मैप में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया था। नेपाल इन इलाकों पर लंबे समय से अपना दावा जताता रहा है। नेपाल सरकार के इन इलाकों को लेकर जताए गए दावों के बीच भारत सरकार ने न केवल नाराजगी जाहिर की, बल्कि उसके इस कृत्य को स्वीकार न करने की बात भी कही। जाहिर तौर पर भारत सरकार को नेपाल के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत की पहल करनी चाहिए। नेपाल की अति आक्रामकता का बेहद सधे अंदाज में जवाब देने में भारत को देर नहीं करनी चाहिए। जितनी तल्खी के साथ नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने एक इंच जमीन नहीं छोड़ना की बात कही, वह उसकी नीयत को जाहिर करता है। अभी तक भारतीय पक्ष ने काफी संयम का परिचय दिया है। मगर अनाप-शनाप बयानबाजी तथा सीमा पर सेना की तैनाती की बात कहकर नेपाल अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है।
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