चीन को सही जवाब
लद्दाख के गालवान घाटी और पैंगाग झील के पास चीन की बढ़ती सैन्य मौजूदगी ने भारत को भी वैसा ही करने को मजबूर किया है।
चीन को सही जवाब |
पिछले कई दिनों से दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। दोनों ओर से झड़प, मारपीट, धक्का-मुक्की, डंडे सब चले हैं। यह स्थिति किसी दृष्टि से स्वीकार करने योग्य नहीं है। दोनों ओर के अधिकारियों की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलने के बाद आखिर किया क्या जा सकता है?
कहा जा रहा है कि राजनयिक, सैनिक एवं राजनीतिक तीनों स्तरों पर बातचीत कर समाधान निकालने की कोशिश जारी है, किंतु तत्काल इस बात की संभावना कम है कि चीन पीछे हट जाएगा। इस महीने के आरंभ में अचानक पिंगा झील के चीन की तरफ वाले भाग के एक छोर पर चीनी सैनिक गतिविधियां बढ़ गई। जितनी गतिविधियां चीन की तरफ से बढ़ी हैं भारत की ओर से भी उतनी ही आक्रामकता और शक्ति प्रदर्शन किया जा रहा है।
स्थिति की गंभीरता ही है, जिससे थल सेना प्रमुख जनरल मुकुंद नरवणो को लेह का दौरा करना पड़ा। उन्होंने वहां सारी सुरक्षा तैयारियों का जायजा लिया। चीन इस समय कई कारणों से भारत सहित कई देशों के खिलाफ आगबबूला है। कोरोना प्रसार में भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन में चीन के खिलाफ विश्व समुदाय का साथ दिया और दो टूक कहा कि इसकी जांच होनी चाहिए। विश्व की अनेक कंपनियां चीन से अपना बोरिया बिस्तर समेटना चाहती हैं और उनका ध्यान भारत की ओर है। इसमें भारत का कोई दोष नहीं।
हमारे यहां कोई निवेश कर कारखाना लगाना चाहेगा तो हम नकार नहीं सकते। किंतु चीन अपने गिरेबान में झांकने की बजाय भारत को ही दुश्मन मान कर व्यवहार कर रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत का मुखर रवैया भी उसकी चिंता का कारण है, क्योंकि उसे भी कश्मीर का भाग मिला हुआ है। 1960 में चीन ने यही गड़बड़ी की शुरुआत की थी, जिसके बाद 1962 का युद्ध हुआ था। इसलिए भारत यहां किसी तरह की न ढील दे सकता है और न ही अनदेखी कर सकता है। चीन का यह रवैया आपत्तिजनक और अस्वीकार्य है।
अगर उन्होंने पैंगाग झील के उत्तरी छोर पर कुछ टेंट गाड़ दिए हैं और बंकर खोदने की कोशिश कर रहे हैं तो फिर हमें अपने तरीके से उसका जवाब देना होगा। पहला जवाब तो यही है कि चीनी सेना को वैसा करने से रोका जाए। बातचीत अपनी जगह जारी रह सकती है, लेकिन सीमा पर स्थित सेना का अपना दायित्व है। वह बातचीत के परिणामों की प्रतीक्षा नहीं कर सकती।
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