मतैक्य नहीं
देशव्यापी लॉक-डाउन के 50 दिन पूरे हो गए। लॉक-डाउन का यह तीसरा चरण चल रहा है। बीते सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉक-डाउन के भविष्य के साथ-साथ कोरोना विषाणु से पैदा हुए विभिन्न संकटों को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तृत चर्चा की।
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लॉक-डाउन बढ़ाया जाए या नहीं इस मुद्दे पर मतैक्य कायम नहीं हो सका। बैठक में मुख्यमंत्रियों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं थीं।
कुछ राज्य लॉक-डाउन के साथ आर्थिक गतिविधियां चलाने के पक्षधर हैं लेकिन कुछ राज्य ऐसे हैं, जो अतिरिक्त खतरा नहीं उठाना चाहते। चर्चा में शामिल पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, प. बंगाल, राजस्थान, बिहार और तमिलनाडु के मुख्यमंत्रियों ने लॉक-डाउन की अवधि 17 मई के बाद भी बढ़ाने की मांग की है। इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को शायद यह आशंका है कि लॉक-डाउन हटने के बाद कोरोना विषाणु महामारी का प्रसार तेजी से होगा और इसके रफ्तार को रोकना असंभव हो जाएगा। यह हो सकता है कि इन राज्यों का नेतृत्व करने वालों में आत्मविश्वास की कमी हो।
क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी केवल केंद्र की नहीं राज्यों की भी है। इस तथ्य के बावजूद लॉक-डाउन को और आगे बढ़ाने की मांग करना यह साबित करता है कि कोरोना विषाणु महामारी के साथ जीने की आदत डालने की बात को वे सिरे से खारिज करते हैं। इसीलिए इन राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्रीय लॉक-डाउन को सुरक्षा कवच मानकर चल रहे हैं।
लॉक-डाउन बढ़ाने की मांग का एक राजनीतिक पहलू भी हो सकता है। जिन राज्यों ने लॉक-डाउन बढ़ाने की मांग की है, उनमें से ज्यादातर गैर भाजपा शासित राज्य हैं। यह हो सकता है कि इन राज्यों का नेतृत्व राजनीतिक स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार दुविधा में डालना चाहता हो। अगर लॉक-डाउन हटा और कोरोना महामारी का फैलाव हुआ तो विपक्ष मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर सकता है।
अगर लॉक-डाउन बढ़ाने या हटाने का मसला राजनीति प्रेरित नहीं है तो भी केंद्र सरकार के लिए यह दुविधा का क्षण है। वास्तव में यह समय सहकारी संघवाद का है, जिसके तहत केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारें सामूहिक समस्याओं का समाधान करने के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर अन्त:क्रिया करती है। पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने इसी सहकारी संघवाद की ओर इशारा किया था।
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