वापसी का महाअभियान
कोरोना की वजह से विदेश में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए सात मई से भारत का महाअभियान आरंभ हो गया है।
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इन सात दिनों में 12 देशों में फंसे करीब 15 हजार लोगों को एयर इंडिया के 64 विशेष विमानों से लाने का निर्णय कितना सही है या गलत, इसके बारे में अलग-अलग राय हैं किंतु देश की कुछ जिम्मेवारी होती है और उसके तहत यह आवश्यक हो गया था। वैसे विदेशों से भारत आने के लिए लाखों लोग निबंधन करा रहे हैं। खाड़ी से ही तीन लाख लोगों ने निबंधन करा लिया है।
सभी को लाने का कदम उठाया जाए तो पता नहीं कितनी और संख्या इसमें जुड़ जाएगी। वैसे केवल हवाई जहाजों का ही उपयोग नहीं हो रहा। मालदीव से करीब 1 हजार भारतीयों को लाने के लिए सेतु समुद्र अभियान लॉन्च किया गया है जिसमें नौसेना युद्धपोत आईएनएस जल और आईएनएस मगर क्रमश: 8 और 10 मई को मालदीव पहुंच जाएंगे। ध्यान रखिए कि अभी जो भारतीय अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश, मलयेशिया, फिलीपिंस, सिंगापुर, यूएई, सऊदी अरब, कतर, बहरीन, कुवैत और ओमान में फंसे हैं, प्राथमिकता के आधार पर चयन कर उन्हें लाया जा रहा है।
यही सही नीति भी है। जो लोग सामान्य तौर पर विदेशों में काम कर रहे हैं, या रह रहे हैं, उनके बारे में आपातस्थिति के तहत विचार करना उचित नहीं होता। कोरोना प्रकोप आरंभ होने के बाद भारत जिन नागरिकों को लाया था उनसे किराया नहीं लिया गया था। उस समय यह उम्मीद शायद नहीं थी कि बाद में यह संख्या इतनी बढ़ जाएगी। जो सक्षम हैं, उनसे किराया लिया ही जाना चाहिए। अगल-अलग देशों के लिए अलग-अलग किराया तय करना स्वाभाविक और सही नीति है। किराया बिल्कुल सामान्य है। उदाहरण के लिए खाड़ी देशों से 15 हजार, बांग्लादेश से 12 हजार तथा ब्रिटेन से 50 हजार..।
भारतीय जितनी संख्या में दुनिया भर में हैं, उनमें से कुछ अंश को भी वापस लाना बड़ी चुनौती होगी। हालांकि इसकी भी तैयारी की जा रही है। नौसेना को 12 अन्य युद्धपोतों को स्टैंडबाइ में रखने का आदेश दिया जा चुका है ताकि जरूरत पड़ने पर खाड़ी में फंसे भारतीय नागरिकों को बड़े पैमाने पर घर लाया जा सके। देश के नाते भारत अपना दायित्व निभाएगा लेकिन विदेशों में रोजगार में लगे लोगों के वापस आने का असर अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक होगा। इसलिए इस अभियान के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों से बचने का रास्ता निकालना होगा।
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