एक और नई पार्टी
भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण द्वारा राजनीतिक पार्टी के गठन को मीडिया ने ज्यादा प्रमुखता नहीं दी तो यह स्वाभाविक ही है।
![]() भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण |
भारत में हर वर्ष अनेक पार्टयिां बनतीं हैं और वो कहां खो जाती हैं पता भी नहीं चलता। चंद्रशेखर की छवि एक उग्र दलित कार्यकर्ता की है जो ‘मीम-भीम’ यानी दलित मुसलमानों के गठजोड़ की राजनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इस समय यह नारा कई ओर से दिया जा रहा है। असदुद्दीन ओवैसी इसी नारे के साथ मुसलमानों और दलितों के गठजोड़ से अपनी राजनीति साधना चाहते हैं। बेशक, चंद्रशेखर ने अभी तक किसी परिपक्व व्यक्तित्व का परिचय नहीं दिया है, लेकिन उन्होंने दलित युवाओं का एक आक्रामक समूह अवश्य खड़ा किया है। इसका असर धीरे-धीरे समाज में बढ़ा है। नागरिकता संशोधन कानून के विरु द्ध हुए आक्रामक आंदोलन में भी उनकी भूमिका है।
उनके तेवर को देखते हुए कई राज्यों में उनके कार्यक्रमों पर रोक लगती है। कई बार उनकी निजी गतिविधि भी नियंत्रित होती है। इस तरीके से आप मीडिया में सुर्खियां पा सकते हैं, कुछ युवाओं को अपनी ओर खींच सकते हैं तथा एक तबके में उबाल भी पैदा कर सकते हैं। पर राजनीति का चरित्र अलग है। राजनीतिक दल बनाने का मतलब है कि आप चुनाव जीतकर सत्ता तक जाना चाहते हैं या संसद एवं राज्य विधायिकाओं में अपनी प्रभावी उपस्थिति की ललक आपमें हैं। इसके लिए विस्तृत सिद्धांत, कार्यक्रम सामने रखना होगा। साथ ही निजी और सामूहिक व्यवहार में संयम और संतुलन की आवश्यकता है। संगठन बनाना, उसका विस्तार करना तथा लोगों तक अपने विचार व कार्यक्रमों को लेकर पहुंचने के लिए अहर्निश परिश्रम की आवश्यकता है।
अगर उनकी मुख्य कार्यभूमि अभी उत्तर प्रदेश है तो वहां दलितों के नाम पर पहले से बसपा है। मायावती ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा है कि चन्द्रशेखर को दलितों से कोई लेना-देना नहीं। तो उनकी पहली प्रतिस्पर्धा बसपा से ही होगी जो कि एक स्थापित दल है। दूसरे, मुसलमान परंपरागत रूप से वहां सपा को मत देते हैं। उन्हें अपनी ओर खींचना भी आसान नहीं होगा। वैसे भी दलित और मुसलमान गठबंधन का नारा स्वतंत्रता के पूर्व जिन्ना ने दिया था। इसका उसने केवल लाभ उठाया। यह नारा आज लोगों को खींच पाएगा इसमें संदेह की पूरी गुंजाइश है।
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