मुशर्रफ को सजा
पाकिस्तान के पूर्व सैनिक तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को वहां की एक विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई है।
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अदालत ने उन्हें देश का संविधान बदलकर गैर-संवैधानिक तरीके से देश के नागरिकों के ऊपर आपातकाल थोपने का दोषी पाया है। पाकिस्तान का संविधान इस कृत्य के लिए देशद्रोह का प्रावधान करता है, और ऐसे कृत्य करने वाले व्यक्ति के लिए संविधान में मौत की सजा का प्रावधान है। हालांकि वहां का सबसे शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान अदालत के इस फैसले से नाखुश है। सेना के प्रवक्ता का विश्वास है कि पूर्व सैन्य प्रमुख और देश के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने चालीस वर्षो से ज्यादा समय तक देश की सेवा की है, वह देशद्रोही नहीं हो सकते।
अदालत के फैसले के विरुद्ध सेना की इतनी तीखी प्रतिक्रिया के बाद यह संभव नहीं लगता कि इस फैसले का क्रियान्वयन हो पाएगा। पाकिस्तान की न्यायपालिका के पिछले कुछ फैसलों का अध्ययन यह बताता है कि वहां की विधायिका भले प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह नहीं कर पा रही है, लेकिन न्यायपालिका निष्पक्ष और बिना किसी दबाव के अपनी भूमिका का निवर्हन कर रही है।
यह कह सकते हैं कि सीमित अथरे में ही सही लेकिन कानून का शासन लागू हो रहा है। न्यायशास्त्र का सिद्धांत यही कहता है कि कानून के समक्ष सब बराबर हैं। इसीलिए वहां की न्यायपालिका ने दो हजार तेरह में सत्ता में लौटे नवाज शरीफ को जुलाई दो हजार अठारह में भ्रष्टाचार के मामले में दस साल की सजा सुनाई थी। और अब पूर्व सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुना कर न्यायिक सक्रियता की ओर कदम बढ़ा रही है।
पिछले दिनों पाकिस्तान की सरकार सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को तीन साल के लिए बढ़ाने की अधिसूचना जारी की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया था। बाद में शीर्ष अदालत ने उनकी सेवा अवधि को सिर्फ छह महीने बढ़ाने की मंजूरी दी। इन घटनाओं से यह संकेत मिलता है कि न्यायपालिका अपनी सर्वोच्चता स्थापित करना चाहती है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान ने न्यायपालिका के सामने हाथ खड़े कर दिए हैं। सेना जनरल मुशर्रफ के पक्ष में जिस मजबूती के साथ खड़ी हुई है, उससे जाहिर होता है कि मुशर्रफ की फांसी की सजा का क्रियान्वयन मुश्किल है।
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