चीन की रणनीति
चीन की ओर से जम्मू-कश्मीर मामले पर जो बयान दिया गया है, उसके बारे में कोई सीधा सपाट निष्कर्ष निकालना उचित न होगा।
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हालांकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तथा सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा की बीजिंग में उपस्थिति के समय चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग का यह कहना महत्त्वपूर्ण अवश्य है कि कश्मीर पर चीन का रुख है कि भारत और पाकिस्तान को आपस में बातचीत के जरिए मसले को सुलझाना चाहिए। ध्यान रखिए, इमरान, बाजवा और चीनी नेताओं की मुलाकात पर यह पत्रकार वार्ता थी। इस नाते कोई इसका अर्थ निकाल सकता है कि चीन ने अपने रु ख में बदलाव किया है।
अभी पिछले सप्ताह ही संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन में चीन के विदेश मंत्री ने कहा था कि कश्मीर मसले का समाधान संयुक्त राष्ट्र चार्टर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर निकाला जाना चाहिए। यह भारत विरोधी बयान था। महासभा में चीन के अलावा तुर्की एवं मलयेशिया ने ही जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन किया था। इसके पूर्व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तो चीन ही भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाया तथा उसकी पहल पर ही बंद कमरे की मंतण्रा हुई।
5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान की पीठ पर केवल चीन का ही हाथ था। इसलिए यह मानना कठिन है कि अचानक उसके रु ख में बदलाव आ गया है। लगता है कि 11-12 अक्टूबर की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा को ध्यान में रखते हुए यह बयान दिया गया है ताकि थोड़ा माहौल सामान्य बन सके। चीनी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से औपचारिक वार्ता के लिए भारत आ रहे हैं। महाबलीपुरम में दोनों नेता दो दिनों तक वार्ता करेंगे। पिछले वर्ष अप्रैल में शी ने मोदी को आमंत्रित कर वुहान में दो दिनों तक अनौपचारिक बातचीत की थी।
उसी समय यह सिलसिला आरंभ हुआ। चीन को पता है कि इस समय जम्मू-कश्मीर पर उसकी भूमिका भारत में माहौल उसके खिलाफ है। तो ऐसा बयान देने में कोई हर्ज नहीं। यह सामान्य बयान है कि कश्मीर द्विपक्षीय मुद्दा है, और दोनों पक्षों को बातचीत के जरिए इसे सुलझाना चाहिए। चीन स्वयं जम्मू-कश्मीर के बड़े भाग पर कब्जा करके बैठा है। इस कारण नहीं चाहेगा कि भारत जम्मू-कश्मीर समस्या के संपूर्ण समाधान के लिए कदम बढ़ाए। सो, उसके बयान को गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है।
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