शरणार्थी बनाम घुसपैठिए
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) पूरे देश में लागू किया जाएगा, इसलिए एनआरसी पर भाजपा की एक संगोष्ठी में इसे लागू करने की बात करना सरकार के पुराने दृष्टिकोण का दोहराव ही है।
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दरअसल, यह भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र का हिस्सा रहा है। यह पश्चिम बंगाल की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की उपज थी, जिसके तहत उन्हें यह बात वहां कहनी पड़ी। खुद शाह ने कहा भी कि तृणमूल कांग्रेस एनआरसी के बारे में लोगों को गुमराह कर रही है। ऐसे में उन्हें लगा होगा कि लोगों के मन में एनआरसी के बारे में व्याप्त संशय को दूर किया जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश से किसी शरणार्थी को जाने नहीं देंगे और घुसपैठिये को रहने नहीं देंगे। नि:संदेह घुसपैठियों से न केवल देश के आर्थिक संसाधनों पर बोझ बढ़ता है, बल्कि उनकी उपस्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक भी है। लेकिन इनकी पहचान की प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भारतवासी को अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की रणनीति दो स्तरों पर काम कर रही है-एक है एनआरसी लागू करना और दूसरा है नागरिकता कानून में संशोधन करना। गृह मंत्री ने कहा भी कि एनआरसी लागू करने से पहले सभी हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित किया जाएगा। यानी इन समुदायों के जो लोग एनआरसी में जगह नहीं पा सकेंगे, उन्हें इस कानून के जरिये भारत की नागरिकता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया जा सकेगा। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित कराने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह तार्किक रूप नहीं ले सका। इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का प्रावधान आसान किया गया था। इसके बावजूद धर्म पर आधारित सरकार का यह कदम विवाद पैदा करेगा। शाह के बयान पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया के रूप में इसकी झलक देखी जा सकती है। लेकिन इसे वोट की राजनीति के रूप में देखना उचित नहीं होगा।
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