बैंक में निवेश
अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार ने बैंकों के विलय एवं पुनर्पंजीकरण को जो निर्णय लिया, उस पर अमल आरंभ हो गया है।
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आईडीबीआई बैंक के पुनपरूजीकरण के लिए 9,300 करोड़ रुपये के निवेश की मंजूरी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। आईडीबीआई बैंक में भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की 51 और सरकार की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। एलआईसी 4,743 करोड़ और सरकार 4,557 करोड़ रुपये लगाएगी।
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के साथ कंगाल हो चुके बैंकों को बचाने के लिए नियमों-कानूनों में बदलाव और बकाया वसूली के लिए कठोर कदमों के साथ कई प्रकार की पहल कीं। इनमें बैंकों में दूसरी सार्वजनिक कंपनियों और सरकार का निवेश, बैंकों का विलय आदि प्रमुख हैं। इसी के तहत एलआईसी को आर्थिक रूप से कमजोर हो चुके इस बैंक में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी अधिगृहित करने के लिए तैयार किया।
इससे बैंक की स्थिति काफी सुधर गई है। इस 9,300 करोड़ रुपये के निवेश से बैंक के रिजर्व बैंक के प्रॉम्पट करेक्टिव एक्शन (पीआरसी) फ्रेमवर्क से अगले वर्ष बाहर आने का अनुमान है। इस निवेश के बाद आईडीबीआई स्वत: पूंजी जुटाने की स्थिति में हो जाएगा। सरकार का आरंभिक आकलन सही साबित हो रहा है कि आईडीबीआई में निवेश करने से एलआईसी की भी स्थिति मजबूत होगी।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बैंक ने 3,800 करोड़ रुपये का लाभ कमाया है, और एलआईसी की 250 करोड़ प्रीमियम की पॉलिसियां बेची हैं। बैंक ने अगले वित्त वर्ष में दो हजार करोड़ रुपये के प्रीमियम की पॉलिसियां बेचने का लक्ष्य रखा है। इस तरह एलआईसी को बैंक का पूरा ढांचा एजेंट के रूप में मिल गया है। चूंकि बैंक आवास ऋण सहित विभिन्न क्षेत्रों में भी कारोबार को बढ़ाने की तैयारी कर रहा है, इसलिए इससे सुस्ती के दौर में अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद मिल सकेगी।
इस समय विकास की गति के नीचे लुढ़कने, चीन-अमेरिका व्यापार तनाव के बढ़ने और दुनिया में मंडराते मंदी के खतरे के कारण भारत के शेयर बाजार में भी अस्त-व्यस्तता की स्थिति बन गई है। शेयर बाजार में गिरावट निवेशकों में अर्थव्यवस्था को लेकर निराशा दर्शा रही है। जाहिर है, सरकार ने अर्थव्यवस्था में विश्वास पैदा करने के लिए जो कदम उठाए उनका वैसा मनोवैज्ञानिक असर नहीं हुआ जैसा होना चाहिए। हालांकि भारत में अपनी अर्थव्यवस्था को दुरु स्त करने की क्षमता है।
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