देर से दी सफाई
जम्मू-कश्मीर का विशेष दरजा खत्म करने और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने पर पाकिस्तान की बौखलाहट जगजाहिर थी।
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अब उसने भारत विरोधी रणनीति के तहत संयुक्त राष्ट्र को लिखे पत्र में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के एक बयान का हवाला दिया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर में हिंसा की स्वीकारोक्ति बताई गई है।
यही नहीं, स्थिति की भयावहता को प्रदर्शित करने के लिए श्रीनगर हवाई अड्डे से राहुल गांधी समेत विपक्षी नेताओं के लौटाने का भी इसमें जिक्र किया गया है। जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का बार-बार आरोप लगाने वाले पाकिस्तान को इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए एक अच्छा मौका मिल गया।
पाकिस्तान का यह कदम अप्रत्याशित नहीं था। राहुल गांधी के बयान का पाकिस्तानियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने की प्रबल आशंका थी। भारत में कहा जा रहा था कि राहुल गांधी के बयान से पाकिस्तान के दृष्टिकोण को मजबूती मिलेगी। इसके बावजूद राहुल गांधी संभले नहीं और ऐसे बयान देते गए, जिससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का पक्ष कमजोर करने वाली परिस्थिति पैदा हो गई।
चूंकि भारत लोकतांत्रिक देश है, इसलिए राहुल गांधी को देश की खातिर सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है, लेकिन मामले की नजाकत के बरक्स उन्हें फिलहाल ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए था, जिससे पाकिस्तान के दृष्टिकोण को बल मिलता। स्वाभाविक है देश का जनमानस ऐसे बयान को पसंद नहीं करता। फिर कश्मीर में इतनी हिंसा भी नहीं है, जितना विपक्ष शोर मचा रहा है। अगर नब्बे के दशक के मुकाबले तो यह बहुत कम है।
अब अपनी फजीहत होती देख राहुल गांधी ने कश्मीर में हिंसा भड़काने और आतंकवाद का समर्थन करने को लेकर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई है। अच्छा होता कि राहुल गांधी यह कदम पहले उठाते। इससे न केवल देश के भीतर राहुल का कद बढ़ता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की लोकतांत्रिक सत्ता की बेहतर छवि बनती। पाकिस्तान को भी यह सबक मिलता कि लोकतांत्रिक राज्य कैसे काम करता है। उनकी पार्टी के अधीर रंजन चौधरी की बयानबाजी से लोग पहले से ही खफा हैं।
यह समझ से परे है कि बार-बार पराजय का सामना करने के बावजूद कांग्रेस ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है, लेकिन अगर यह वोट बैंक की राजनीति से प्रेरित है, तो इससे कांग्रेस को राजनीतिक फायदा मिलने की संभावना नहीं लगती।
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