24 कैरेट सोना
भारतीय बैडमिंटन सनसनी 24 वर्षीय पुसरला वेंकट सिंधु-पी.वी. सिंधु-ने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में जीत हासिल कर इतिहास रच दिया।
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वैसे तो रविवार का दिन भारतीय क्रिकेट टीम और युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप में विजय हासिल करने के लिए भी लंबे वक्त तक याद रखा जाएगा मगर सिंधु की यह जीत वास्तव में सभी विजय पर भारी और काफी अहम है। लगातार हर विश्व प्रतियोगिता के फाइनल में हार का स्वाद चख रहीं सिंधु की इस जीत ने न केवल उनके हौसले को चट्टानी मजबूती दी है वरन भारतीय बैडमिंटन को भी बुलंदी बख्शी है। 2016 के रियो ओलंपिक के बाद सिंधु ने कुल 16 फाइनल में प्रवेश किया, किंतु पांच खिताब ही अपने नाम कर पाई। लोग उन पर सवाल उठाने लगे, उन्हें चुका हुआ साबित करने की होड़ सी मच गई। यहां तक कि उन्हें ‘फाइनल’ का चोकर तक कहा जाने लगा। वह खुद बतातीं हैं कि वह किस कदर परेशान हुई। लेकिन ऐसी बातों से टूटना, मन को छोटा करना और अवसाद में जाना सिंधु की फितरत में कहां? कहते हैं न ‘हार के बाद ही जीत है’ सो सिंधु के विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय होने का आधार ही उनकी मानसिक मजबूती को बयां करता है। उनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। तमात विपरीत परिस्थितियों और फाइनल में हार से बेदम हो चुकी सिंधु ने अपनी ताकत को समझा और वह हासिल किया, जिसकी वह हकदार हैं। नि:संदेह सिंधु की यह जीत भारतीय बैडमिंटन को वह स्थान दिलाने में मददगार होगी, जो निशानेबाजी या क्रिकेट को हासिल है।
साथ ही युवा पीढ़ी के लिए भी प्रेरणास्पद होगी। वैसे भी पिछले आठ से दस सालों के दरम्यान बैडमिंटन में भारत ने काफी दबदबा बनाया है। अब इस हौसले को बरकरार रखने का मनोबल बनाए रखना होगा। विश्व की चोटी की खिलाड़ियों से लोहा लेना और उन्हें मिनटों में धूल चटाना, यह दिखाता है कि ताकत और गहराई के मामले में भारतीय खिलाड़ी कहीं से भी बाकी खिलाड़ियों से पीछे नहीं हैं। सिंधु का जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को महज 37 मिनट में शिकस्त देना यह भी परिलक्षित करता है कि भारतीय खिलाड़ी अब ऐसे मौकों पर खुद को सही साबित करने लायक हो चुके हैं। कुल मिलाकर सिंधु की विराट सफलता से देश गदगद है। फिलहाल सिंधु का लक्ष्य 2020 में होने टोक्यो ओलंपिक में सोना जीतने का है, जिसकी तैयारी के लिए यह जीत खास प्रेरणा देगी। उम्मीद है वो ओलंपिक में भी अपने दमदार खेल से इसे हासिल करेंगी। जय हो।
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