रघुराम की चिंता
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जो टिप्पणियां की हैं, सुधार के जो उपाय सुझाए हैं उनको लेकर भले अर्थशास्त्रियों में दो राय हों मगर उन पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
रघुराम की चिंता |
सही है कि पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही और वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर काफी नीचे आ गई। हालांकि इसका मूल कारण गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का संकट माना गया। यह काफी हद तक सही है।
ये कंपनियां उपभोक्ता सामग्रियों के लिए कर्ज देती हैं। ये लड़खड़ा जाएं तो बिक्री घटती है, और असर संपूर्ण विकास गति पर पड़ता है। राजन वर्तमान धीमेपन को चिंताजनक बताते हुए कहते हैं कि सरकार को ऊर्जा एवं गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तत्काल सुलझाना चाहिए। निजी निवेश को प्रोत्साहित देने के लिए भी उनका सरकार को सुझाव है।
रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर शशिकांत दास ने कहा है कि हम प्रमुख गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को डूबने नहीं देंगे। सरकार गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठा रही है। इसमें डिबेंचर लाने के लिए आरक्षित पूंजी को खत्म करना प्रमुख कदम है पर उनकी हालत जितनी खस्ताहाल है, उसका एक बार समग्र मूल्यांकन होना चाहिए ताकि पता चले कि डूबते कर्ज की मात्रा कितनी है, और सरकार कितना वित्त पोषण कर सकती है। राजन ने विकास दर की गणना को लेकर भी फिर से प्रश्न उठाए हैं।
पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम ने अपने एक लेख में इसका जिक्र किया था। हालांकि नीति आयोग की तरफ से इसका जवाब दे दिया गया लेकिन अर्थशास्त्रियों में इस पर मतभेद कायम हैं। मोदी सरकार ने फरवरी, 2015 में विकास दर के आकलन की पद्धति में दो प्रमुख बदलाव किए थे। पहला, विकास दर आकलन का बेस इयर 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया गया।
दूसरा, कीमतों को प्रभावित करने वाले कारकों की जगह बाजार मूल्यों को विकास दर आकलन का आधार बनाया गया। नई सीरीज के तहत पहली बार वित्त वर्ष 2013-14 और वित्त वर्ष 2014-15 के जीडीपी का आकलन हुआ। हालांकि राजन ने मूल चिंता आर्थिक सुस्ती को लेकर व्यक्त की है, जो वाजिब है। हमारा मानना है कि सरकार जहां से भी सुझाव आ रहे हैं, सबको खुले मन से ग्रहण करे और यथासंभव तद्नुसार कदम उठाए।
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