उम्मीदें बोल्ड
विश्व की नंबर एक क्रिकेट टीम भारत का विश्व कप सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से महज 18 रन से हार कर बाहर हो जाना, वाकई निराश करने वाला है।
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लीग मैच में 7 मैच जीत कर अंकतालिका में टॉप रहने वाली टीम इंडिया मुख्य मुकाबले में बिखर सी गई। वैसे तो हार और जीत खेल का हिस्सा होते हैं। मगर इस हार ने कई सवाल भी क्रिकेट प्रशंसकों और टीम प्रबंधन के लिए छोड़े हैं। मसलन; हमेशा शीर्ष क्रम पर पूरी तरह निर्भर रहने की आदत और ऐसा होने पर उसकी काट क्या होगी; या तो इसकी तैयारी टीम प्रबंधन ने नहीं की या उसने इस बात की अनदेखी की। यानी प्लान-बी तैयार ही नहीं था। न तो शीर्ष क्रम के लड़खड़ाने को लेकर, न मध्य क्रम की लगातार विफलता को लेकर। ठीक है कल का दिन न्यूजीलैंड का था। कप्तान केन विलियम्सन और उनकी सेना ने हर मोच्रे पर विश्व की सर्वोच्च एकदिवसीय टीम इंडिया को शिकस्त दी। भारतीय टीम के फ्लॉप प्रदर्शन की बात करें तो अंतिम एकादश का चुनाव करने के उसके कई फैसले पसंद नहीं आएंगे। मिसाल के तौर पर मयंक अग्रवाल की अनदेखी करना, के.एल. राहुल को नंबर चार की बजाय आपनिंग में जगह देना, खराब फार्म में चल रहे विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश कार्तिक को महत्त्वपूर्ण मैच में स्थान देना, धोनी को नंबर चार के बजाय 7 पर भेजना और उम्दा गेंदबाजी से प्रशंसकों और विपक्षी टीम का भौंचक्का करने वाले मो. शमी को बेंच में बिठाना आदि हैं।
चूंकि हार के बाद अब इन सब बातों पर बहस का कोई मतलब भले न हो, किंतु आने वाले वक्त में टीम को पटरी पर लाने के वास्ते इन पर निष्पक्षता से बहस जरूर होनी चाहिए। खासकर कोच की भूमिका को लेकर भी बोर्ड को कड़े फैसले लेने होंगे। ज्यादा निराश करने वाली बात यह रही कि जिन-जिन खिलाड़ियों को दूसरे खिलाड़ियों के बदले मौके मिले, वह उसमें अपनी छाप नहीं छोड़ सके। जैसे शिखर धवन की जगह पर राहुल से ओपनिंग कराने का मसला हो या विजय शंकर की जगह पर कभी कार्तिक तो कभी पंत को खेलाना बैक फायर कर गया। इसके बावजूद कई अच्छी बातें भी देखने को मिलीं। उदाहरण के लिए धोनी का रनों के लिए संघषर्, रोहित शर्मा की रिकॉडतोड़ बल्लेबाजी, शमी की बेमिसाल बॉलिंग या बुमराह का पुराने दौर के गेंदबाजों की याद दिलाना। सो, हार को भुलाकर नये सिरे से खुद को खड़ा करने की कवायद में जुट जाना ही असली जीत होगी।
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