टूट गया महागठबंधन
बहुजन समाज पार्टी की नेता एवं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पार्टी की समीक्षा बैठक में गठबंधन से अलग होने का जो संकेत दिया उससे शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ हो।
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लोक सभा चुनाव में गठबंधन की हार की यह स्वाभाविक परिणति है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान भविष्यवाणी की थी कि चुनाव के बाद यह गठबंधन टूट जाएगा और बसपा तथा सपा फिर आपस में लड़ती-झगड़ती नजर आएंगी।
वास्तव में जो लोग मायावती की राजनीतिक प्रकृति को अच्छी तरह समझते हैं, वे शुरू से ही कयास लगा रहे थे कि ऐसा ही होगा। मायावती का मानना है कि इस गठबंधन से बसपा को फायदा नहीं हुआ और सपा के नेता अखिलेश यादवों का वोट अंतरित नहीं करा पाए। लेकिन मायावती के इस राजनीतिक विश्लेषण का चुनावी तथ्य और आंकड़े समर्थन नहीं करते। हैरानी की बात है कि दो हजार चौदह के लोक सभा चुनाव में सपा के पास पांच सीटें थीं, और इस चुनाव में भी उसे पांच सीटें ही मिली हैं, लेकिन अखिलेश अपने परिवार की तीन सीटें गंवा चुके हैं।
दूसरी ओर, मायावती को पिछले चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन इस बार दस सीटें मिली हैं। इसलिए मायावती भले कहें कि पार्टी के परंपरागत वोट बैंक की वजह से इन सीटों पर उन्हें कामयाबी मिली है, लेकिन सचाई यह है कि जिन दस सीटों पर उन्हें जीत मिली है, उनमें गठबंधन का पूरा योगदान है। सपा की हार को देखते हुए लगता है कि उसके वोट तो बसपा में अंतरित हुए लेकिन बसपा के नहीं हुए। बसपा के वोट सपा को अंतरित हुए होते तो अखिलेश के परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं हारा होता। गठबंधन बनते समय सपा और बसपा के बीच समझदारी बनी थी कि जीत के बाद मायावती प्रधानमंत्री बनेंगी और अखिलेश राज्य की राजनीति करेंगे।
अब चुनाव में हार के बाद मायावती के लिए प्रधानमंत्री बनने के सारे अवसर खत्म हो चुके हैं, इसलिए वह राज्य की राजनीति नहीं छोड़ना चाहतीं। ऐसी सूरत में सपा से किनारा करना चाहती हैं क्योंकि ऐसा न होने पर उनकी स्थिति कमजोर होगी। अखिलेश के लिए भी गठबंधन से अलग होने के सिवाय दूसरा रास्ता नहीं था। आखिर उन्होंने उप चुनाव में मायावती के अकेले लड़ने के फैसले का स्वागत करते हुए गठबंधन से अलग होने पर अपनी हामी भर दी। इस गठबंधन के टूटने से देश की गठबंधन की राजनीति पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
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