तेल का संकट
अमेरिका ने भारत सहित आठ देशों-जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, तुर्की, इटली, यूनान और चीन को ईरान से कच्चा तेल खरीदने की जो रियायत दी थी, उसकी समय सीमा दो मई को समाप्त हो जाएगी।
तेल का संकट |
जाहिर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर अधिकतम दबाव बनाना चाहते हैं ताकि वह अपना परमाणु कार्यक्रम स्थगित कर दे।
नई दिल्ली तेहरान से तेल के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। भारत ईरान से तेल का आयात बंद कर दे तो नई दिल्ली का ऊर्जा क्षेत्र और आर्थिक सुरक्षा दोनों गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इस संकट का उपाय है कि भारत ईरान से तेल की निर्भरता कम कर दे। लेकिन इसका प्रतिकूल असर भारत-ईरान के द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ना स्वाभाविक है।
पिछले साल मई में इस संकट की शुरुआत हुई थी, जब ट्रंप ने अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए मई, 2018 में ईरान पर दबाव बनाने के लिए उसके साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया था। दरअसल, जुलाई, 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के बीच परमाणु समझौता हुआ था।
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नरम रुख अपनाते हुए ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले कुछ रियायतें दी थीं, लेकिन ट्रंप का मानना था कि ईरान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, परमाणु समझौते की शतरे का उल्लंघन कर रहा है। इसीलिए उन्होंने यह समझौता तोड़ दिया था। ईरान के विरुद्ध अमेरिका की कठोर नीति का असर भारत ही नहीं समूचे विश्व पर पड़ेगा क्योंकि ईरान से तेल की आपूर्ति ठप होने से पूरे विश्व में तेल की कमी होगी। इससे तेल की कीमतों के साथ अन्य पेट्रोलियम पदाथरे की कीमतों में भी इजाफा होगा।
दरअसल, अमेरिका ईरान में सत्ता परिवर्तन करवाना चाहता है। वहां 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई थी, जिसके बाद ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया गया था। तब से वहां धर्मतंत्र है, और देश का शासन धर्मगुरुओं द्वारा चलाया जाता है। ट्रंप धर्मगुरुओं के शासन को उखाड़ फेंकना चाहते हैं। इस काम में उन्हें कुछ प्रमुख अरब देशों और इस्रइल का सहयोग प्राप्त है। लेकिन अहम सवाल है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को क्षति पहुंचने से रोकने का क्या उपाय करे? जाहिर है कि उसे ईरान पर तेल की निर्भरता का वैकल्पिक रास्ता ढूंढ़ना होगा।
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