मुद्दा जो है
फिल्म अभिनेत्री उर्मिंला मातोंडकर ने कांग्रेस पार्टी में प्रवेश किया। कुछ दिन पहले सपना चौधरी के भी कांग्रेस में आने-जाने की खबर आई।
![]() मुद्दा जो हैं |
कलाकार समाज का अंग होता है और उसे भी अपनी राजनीतिक प्राथमिकता तय करने का हक है। पर सवाल यह है कि इस तरह से ठीक चुनाव से पहले किसी पार्टी में प्रवेश का आशय क्या है?
क्या उर्मिंला कांग्रेस की राजनीति के जरिये देशसेवा करने पहले नहीं आ सकती थीं? सवाल तो यह बनता है कि क्या उर्मिंला मातोंडकर या कोई वरिष्ठ कलाकार वाकई देश सेवा के लिए ही राजनीति में आ रहा है? या राजनीति में प्रवेश उनके लिए एक तरह से रिटायरमेंट बाद भी चर्चा में बने रहने का जरिया है?
दक्षिण भारत में कलाकारों का बरताव कुछ अलग है। वहां कलाकार अपने समाज के साथ सतत संवाद व सामंजस्य रखते हैं। वे सिर्फ लोकप्रियता भुनाने के लिए राजनीति में नहीं जाते। रजनीकांत और एमजीआर भी इसके उदाहरण रहे हैं। उत्तर भारत में कलाकारों को आम तौर पर अपनी लोकप्रियता की वसूली करने के लिए आते या लाये जाते हैं। राजनीति गंभीर कर्म है, इसमें सतत भागीदारी चाहिए होती है।
चुनावों से ठीक पहले राजनीति में आ कर कलाकार अपनी अगंभीरता का ही परिचय देते हैं। यह ठीक नहीं है। विचारधारा आधारित दल आम तौर पर इस स्टार आकषर्ण से मुक्त रहेंगे, ऐसा भी नहीं माना जा सकता। भाजपा धड़ल्ले से स्टार लोगों की भर्ती कर रही है। जयाप्रदा हाल ही में भाजपा में आई हैं। वाम पक्ष के दल जरूर स्टार आकषर्ण से मुक्त रहे हैं पर मसला यह है समग्र राजनीति ही वाम मुक्त हो रही है। एक वक्त बहुत लोकप्रिय कलाकार बलराज साहनी वामपंथी विचारों से प्रभावित थे। पर उनकी स्टारडम का प्रयोग वामपंथी दलों ने नहीं किया।
हाल में ममता बनर्जी ने बंगाल में बहुत कलाकारों को चुनावी टिकट दिये हैं। इनके मूल में भी लोकप्रियता को भुनाने की आकांक्षा है। कलाकार बेशक राजनीति में आएं पर उन्हें तमाम गंभीर मसलों पर अपनी समझदारी भी दिखानी चाहिए। राजनीति में सिर्फ स्टारडम मुद्दा नहीं होना चाहिए। मुद्दा यह होना चाहिए कि क्या किसी कलाकार का नायकत्व या नायिकात्व जनता के बुनियादी और देश-समाज के समक्ष मौजूद विशिष्ट चुनौतियों के समाधानों का कोई वैकल्पिक मॉडल सुझाने में सक्षम है या नहीं?
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