बढ़ती आय असमानता
ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने भारत में अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई के सम्बन्ध में जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें हैरान करने वाली कोई बात नहीं है।
बढ़ती आय असमानता |
इस रिपोर्ट का निष्कर्ष पूंजीवाद का स्वाभाविक परिणाम है, क्योंकि हमने जो मुक्त अर्थव्यवस्था अपनाई, उस व्यवस्था में ऐसा ही होता है। हमारी चुनावी राजनीति भी पूंजीपतियों पर निर्भर रहने के लिए अभिशप्त है। चुनावी प्रणाली इतनी अधिक खर्चीली हो गई है कि सांसद और विधायक के चुनाव की बात छोड़ दीजिए, एक पाषर्द को भी अपने चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के शीर्ष नौ अमीरों की संपत्ति 50 प्रतिशत गरीब आदमी की संपत्ति के बराबर है। इसी तरह, भारत की शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4 फीसद हिस्सा है और 2018 से 2022 के बीच भारत में रोजाना 70 नये करोड़पति बनेंगे। अर्थशास्त्र का सामान्य नियम है कि पूंजी से पूंजी बनती है। जाहिर है कि जिसके पास पूंजी नहीं है, वह इस खेल में पिछड़ जाता है। बस यहीं से आर्थिक असमानता की शुरुआत होती है।
दरअसल, मानव सभ्यता के विकास-क्रम में असमानता एक शात सत्य है। कार्ल मार्क्स से लेकर लास्की जैसे अनेक बौद्धिकों और विचारकों ने असमानता और विशेषकर आर्थिक असमानता को समाप्त करके समानता पर आधारित समाज की स्थापना का विचार दिया है, लेकिन कोई सफल नहीं हुआ। हालांकि यह भी नहीं कहा जा सकता कि आय की विषमता को कम नहीं किया जा सकता। अगर सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार मुक्त हो जाए और सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक पहुंचने लगे तो अमीर और गरीब की बढ़ती खाई को पाटा जा सकता है।
इसके लिए सरकारों को ईमानदारी से प्रयास करना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन में कहा कि बीते साढ़े चार वर्षो में 5 लाख 78 हजार करोड़ रुपये हमारी सरकार ने किसी को घर, किसी को गैस सिलेंडर, किसी को अनाज खरीदने और किसी को पढ़ाई के लिए उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किये हैं। इस अच्छी पहल के जरिये सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ आम जन तक पहुंचने लगा है। इससे सरकारी धन के बंदरबांट की गुंजाइश खत्म हो गई। इसी तरह अमीरों से उनकी सम्पत्ति पर अतिरिक्त कर वसूलना चाहिए। आर्थिक गैर बराबरी खत्म करने के लिए सरकार को मजबूती के साथ व्यवस्था में बदलाव लाना होगा।
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