साध के बोलें बोल
सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताविक भारतीय आबादी में साक्षरों और शिक्षितों दोनों की संख्या में हर रोज इजाफा हो रहा है।
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वास्तव में यह सुखद स्थिति है। लेकिन मर्यादित भाषा के इस्तेमाल का जब सवाल सामने आता है तो पता चलता है कि इसमें निरंतर गिरावट आ रही है। देश के नागरिकों और मतदाताओं को प्रशिक्षण देने का ध्येय रखने वाले राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता भाषायी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को आये दिन लांघते रहते हैं।
अभी बीते रविवार को भाजपा विधायक साधना सिंह ने उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के प्रति जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वह सचमुच शर्मनाक था और अधिक शर्मनाक यह था कि स्वयं एक महिला होते हुए भी एक दूसरी महिला के प्रति इस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। राजनीतिक नेताओं द्वारा इस तरह की अभद्र और अश्लील भाषा का इस्तेमाल पहली बार नहीं हुआ है। पिछले कुछ वर्षो से राजनीति में भाषाई अभद्रता लगातार बढ़ती गई है। विडंवना यह है कि अभद्र और शालीन और अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल छुटभैये नेता ही नहीं, राष्ट्रीय दलों के बड़े नेता भी कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित विपक्ष के कई बड़े नेता राफेल लड़ाकू विमान सौदे के मसले पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जिस तरह की अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी जितनी भी र्भत्सना की जाए, कम है। अहम सवाल यह है कि राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ की जाने वाली अभद्र टिप्पणियों का सिलसिला कहां जाकर रुकेगा! वैसे तो यह सर्वदलीय चिंता का विषय है लेकिन भाजपा शासक पार्टी है और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भी है। लिहाजा उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर अभद्र भाषा के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाये।
उसे अन्य काम काज के साथ-साथ अपने चिंतन शिविरों में इस बात को शामिल करना चाहिए कि उसके नेता और कार्यकर्ता किस भाषा का इस्तेमाल करें। अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेताओं को मालूम होना चाहिए कि ऐसा करने से उनका पद और कद बढ़ता नहीं है, बल्कि उनकी साख गिरती है और पार्टी मुसीबत में पड़ती है। यह अच्छी बात है कि साधना सिंह ने माफी मांग ली है, लेकिन पार्टी को इनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई अन्य नेता इस तरह की अशोभनीय भाषा के इस्तेमाल की हिम्मत न करे।
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