आक्रामकता लाज़मी

Last Updated 22 Jan 2019 03:00:51 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विपक्ष पर तीखा हमला कतई अस्वाभाविक नहीं है।


आक्रामकता लाज़मी

जब विपक्षी दलों का एकमात्र एजेंडा प्रधानमंत्री को खलनायक साबित करना है तो उसका जवाब इन्हें देना ही है और उसमें प्रेम की भाषा नहीं हो सकती। तब जबकि आम चुनाव सिर पर है। मोदी ने यह हमला महाराष्ट्र और गोवा के अपने कार्यकर्ताओं से बातचीत में किया है। भाजपा और मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती विपक्ष के प्रचार(या दुष्प्रचार?) के बीच अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का आत्मविश्वास बनाए रखने की है। ममता बनर्जी द्वारा अयोजित रैली के बाद तो यह ज्यादा जरूरी हो गया है। प्रधानमंत्री ने अपने तेवर का आभास उसी दिन सिलवासा की रैली में दे दिया था। मौजूदा प्रति हमला उसी का विस्तार है। नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकर्ताओं को समझाने का प्रयत्न किया कि उनके खिलाफ इकट्ठे होने वाले चेहरे में ज्यादातर वे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, या जो किसी राजनीतिक परिवार से आते हैं या जो अपने बेटे-बेटियों को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। सामान्य अर्थों में यह विपक्ष की आलोचना का जवाब लग सकता है, किंतु इसमें सच्चाई भी है।

जो चेहरे मंच पर दिख रहे थे, उनमें ज्यादातर इन तीन परिधियों वाले ही थे। वैसे भी वर्तमान राजनीति का यह ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है, जिसे कोई नकार नहीं सकता। हालांकि वे विपक्ष की आलोचना के साथ अपनी पार्टी और सरकार का पक्ष भी रख रहे हैं। इन दोनों के संतुलन से ही राजनीति सध सकती है। समर्थक और कार्यकर्ताओं को जान लगाकर काम करने की प्रेरणा केवल विपक्ष की आलोचनाओं के तीखे प्रतिवाद से नहीं मिल सकती। इसलिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि उन्हें अपने कार्यकर्ताओं की ईमानदारी, निष्ठा तथा संघर्ष करने की क्षमता पर विश्वास है। वे कह रहे हैं कि पहले की सरकारों में कार्यकर्ताओं की छवि दलालों की बनती थी, जबकि भाजपा-कार्यकर्ताओं की छवि देश के लिए काम करने वालों की है। दूसरे, वे यह भी विश्वास दिला रहे हैं कि विपक्षी हल्ला बोल से यह मत मान लें कि चुनाव में उनका प्रदर्शन बेहतर होगा। ईवीएम की बात उठाकर वे अपनी पराजय पहले ही स्वीकार कर रहे हैं। ये सब बातें समर्थकों और कार्यकर्ताओं के दिलों को स्पर्श करने वाला है। इसके पूर्व राष्ट्रीय परिषद में भी नेताओं-कार्यकर्ताओं को सरकार की उपलब्धियों से संबंधित तथ्य प्रपत्रों के साथ भाषणों द्वारा राजनीतिक एजेंडा समझाने की कोशिश की गई। विपक्ष की मोर्चाबंदी का सामना करने के लिए यह सब बिल्कुल स्वाभाविक है।



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