रोडरेज का कहर
देश की राजधानी दिल्ली में 24 घंटे के भीतर रोडरेज में दो युवकों की हत्या वाकई चिंता का सबब है।
रोडरेज का कहर |
पहले यमुनापार के मयूर विहार इलाके में और उसके बाद शाहदरा के गीता कॉलोनी में गाड़ियों के छू जाने पर मनबढ़ लड़कों का गुस्सा इस कदर भड़का कि उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग कर सामने वाले की जान ले ली। हाल के वर्षो में दिल्ली में रोडरेज के मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
आंकड़े भी इस तथ्य की तस्दीक करते हैं। हाल यह है कि देश में सड़कों पर मारपीट और जान लेने की घटनाओं में रोजाना औसतन तीन लोगों की मौत हो रही है। 2016 के आकंड़ों की बात करें तो उस साल रोडरेज के कुल 1643 मामलों में 788 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 1863 जख्मी हुए थे।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक रोडरेज की घटनाओं की तादाद के मामले में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल और उत्तर प्रदेश शीर्ष पांच राज्यों में शुमार हैं। देश में रोडरेज के कुल मामलों की तादाद करीब 5 लाख पहुंच गई है।
और यह सालाना दस फीसद की दर से बढ़ रही है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि मसला कितना गंभीर है? ऐसा कैसे हो सकता है कि सड़कों पर एक-दूसरे के वाहन टकराएंगे नहीं या टच नहीं करेंगे? ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज करना ही समझदारी है।
अगर मामूली सी बात पर कोई किसी को जान से मार देगा तो सरकार के इकबाल का क्या? हालांकि इस बात में पूरी सचाई है कि भले लोगों के पास पैसा काफी हो गया है मगर उनमें सहिष्णुता की घोर कमी है। किसी के पास न तो धैर्य है और न समझदारी। इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि दिल्ली के साथ ही तमाम शहरों में गाड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ी है, मगर सड़कों का अतिक्रमण उससे दोगुनी गति से बढ़ा है।
साथ ही आधारभूत ढांचे का भी अभाव है। ड्राइवरों में बढ़ती असिहष्णुता भी ऐसे मामले बढ़ने की प्रमुख वजह है। सरकार के लिहाज से उनकी विफलता इस मायने में अहम है कि कैसे लोग हथियारों के साथ सड़कों पर घूमते हैं। उन्हें अपने मुखबिर तंत्र को ज्यादा पैना बनाना होगा। साथ ही ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा व जुर्माने के प्रावधानों को पहले के मुकाबले सख्त बनाकर ही ऐसी वारदातों पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है।
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