कर दिखाने का वक्त

Last Updated 13 Dec 2018 06:28:45 AM IST

चुनाव परिणाम के बाद सरकार गठन की प्रक्रिया आरंभ होती है। तेलंगाना एवं मिजोरम में किसके नेतृत्व में सरकार बनेगी, यह चुनाव के पूर्व ही स्पष्ट था।


कर दिखाने का वक्त

हिन्दी क्षेत्र के तीन प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में ऐसा नहीं था। इसलिए वहां नेता का चयन करना सरकार गठन की प्रक्रिया का पहला कदम है।

हालांकि तीनों राज्यों में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बन रही है और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भले किसी विधायक को अंतर्मन से स्वीकार हो या नहीं कोई विद्रोह करने का दुस्साहस नहीं करेगा। पर ऐसा करते समय उसे तीन बातों का ध्यान रखना है।

पहला, जनता से किए हुए वायदे को और जगाई गई अपेक्षाओं को पूरा करना। दूसरा, अगले लोक सभा चुनाव तक नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा का सामना करने की चुनौती और तीसरा, अगले पांच वर्ष तक भाजपा के प्रदेश नेतृत्व के समक्ष मुख्यमंत्री की प्रभावशाली स्थिति बनाए रखना। ये तीनों बातें कांग्रेस के भविष्य की राजनीति के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। अगले लोक सभा चुनाव की प्रक्रिया आरंभ होने में ज्यादा समय नहीं है।

इसलिए कांग्रेस को कुछ वायदे पूरा करने के लिए त्वरित गति से कदम उठाना होगा। जनता हर बार कुछ अपेक्षाओं के साथ जनादेश देती है। उसकी गहराई को समझना एवं पूरा करना सरकार की जिम्मेवारी होती है। इसलिए उन अपेक्षाओं को समझना भी बड़ी बात है। मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में दो-दो चेहरे जनता के सामने रहे हैं।

उनमें एक-एक वरिष्ठ एवं अनुभवी और दूसरे युवा हैं। राहुल गांधी युवाओं को तरजीह देने की बात करते रहे हैं, पर अनुभव को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए उनकी चुनौती दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने की है। राहुल एवं उनके रणनीतिकारों की नजर भी लोक सभा चुनाव पर है। उसका कुछ एजेंडा साफ हो चुका है। ये तीन सरकारें अगले लोक सभा चुनाव में उसके प्रदर्शन के आधार होने वाले हैं। उसे जनता को बताना होगा कि जिन मुद्दों पर उनने भाजपा सरकार की आलोचना की है, उन पर वह किन मायनों मे भिन्न हैं।

राज्य सरकार उस दिशा में काम करती दिखे, इसके लिए उसे खुद मोर्चा संभालना होगा। भाजपा भी जानती है कि छत्तीसगढ़ को छोड़कर उसकी हार बड़ी नहीं है। उसके सामने भी तात्कालिक लक्ष्य 2019 का लोक सभा चुनाव है। विपक्ष में जाने के बाद बोलना आसान हो जाता है। हम यही चाहेंगे कि पार्टियों को चुनाव के लिए जो राजनीति करनी है करें, लेकिन सरकार सुशासन की कसौटियों पर खरी उतरे।



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