रोडरेज का कहर
राजधानी दिल्ली में कुछ ही दिनों के अंतराल में एक बार फिर रोडरेज की वारदात को अंजाम दिया गया. गाड़ी हल्के से छू जाने से नाराज चार युवकों ने दूसरे गाड़ी वाले की एक आंख फोड़ दी. इससे पहले कांग्रेस नेता की ऐसे ही एक मामले में हत्या कर दी गई.
रोडरेज का कहर |
यह सब दिलवालों का शहर कहे जाने वाले दिल्ली में रोज की बात हो चली है. यहां हर कोई गुस्से में दिखता है; हर कोई जल्दबाजी में होता है. नतीजतन मामूली सी बात पर मारपीट, गाली-गलौज यहां तक कि एक-दूसरे की जान तक लेने पर लोग आमादा हैं.
सड़क पर गुस्सा, नफरत की आग और सामने वाले के खून के प्यासे लोगों की बढ़ती संख्या चिंता के साथ-साथ बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है. आखिर हम कहां जा रहे हैं? आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि मसला हल्के में लेने लायक नहीं है. वैसे रोडरेज की वारदात देश के कमोबेश हर बड़े शहरों में घटित होती है.
मगर दिल्ली में यह कुछ ज्यादा ही है. 2012 में जहां रोडरेज के महज 36 मामले सामने आए थे तो 2015 में यह दर बढ़कर 120 से ज्यादा हो गई. बीच चौराहे पर छोटी सी बात पर खून बहा देने की प्रवृत्ति से पार पाना होगा. यह आचरण न केवल चिंतनीय है बल्कि युवाओं की मानसिक स्थिति, गिरती संवेदनहीनता और बुरे संस्कारों को दर्शाती हैं.
ऐसा कैसे हो सकता है कि गाड़ी को साइड न देने, हार्न बजाने, गाड़ी से गाड़ी छू जाने पर लोग आपा खो दें? यानी कहीं-न-कहीं नियम-कानून में लचीलापन है या लोगों में कानून का डर नहीं. जबकि कई बार हाईकोर्ट ने रोडरेज की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई है. मगर कानून से ज्यादा यह मसला खुद में सुधार लाने से हल हो सकता है. स्वाभाविक है कि आज की भागदौड़ की जिंदगानी ने लोगों के व्यवहार को रुखा बना दिया है.
काम का दबाव, समय पर कार्यालय पहुंचने का तनाव के साथ-साथ पैसे और सत्ता की हनक रोडरेज के लिए प्रेरित करते हैं. इस अपराध में पकड़े जाने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के साथ-साथ ड्राइविंग लाइसेंस आजीवन के लिए रद्द किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में सड़कें युद्ध के मैदान में तब्दील हो जाएगी.
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