महाघोटाले के सबक

Last Updated 20 Feb 2018 04:00:28 AM IST

पंजाब नेशनल बैंक के महाघोटाले ने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं. इस मुद्दे पर उसके पास विपक्ष के हमलों का कोई माकूल जवाब नहीं दिख रहा है.


महाघोटाले के सबक

अपने दामन को पाक-साफ साबित करने के लिए इसकी कई स्तरों पर जांच की जा रही है. लेकिन जैसे-जैसे घोटाले की जांच आगे बढ़ रही यह मामला उलझता ही जा रहा है. पहले यह घोटाला 11,300 करोड़ रुपये का आंका जा रहा था लेकिन अब यह अनुमान से दोगुना बढ़कर 20,000 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया है.

इसकी आंच देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई, यूनियन बैंक, इलाहाबाद बैंक और यूको बैंक पर भी देखी जा रही है. सरकार की दलील है कि यह घोटाला 2011 में शुरू हुआ था और तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी. इस बयान को हास्यास्पद ही कहा जाएगा. केंद्र में पिछले पौने चार साल से एनडीए की सत्ता है. जाहिर है वह किसी भी सूरत में इस घोटाले से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती.

हैरानी की बात यह है कि जब किसी आम ग्राहक के खाते में जमा रकम निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम हो जाती है तो बैंक को उसका तुरंत पता चल जाता है और ग्राहक से अनाप-शनाप जुर्माना भी वसूल लिया जाता है. ऐसे में सवाल  है कि हीरा व्यापारी नीरव मोदी पिछले सात साल से पीएनबी से अवैध तरीके से मनचाही रकम लेता रहा और किसी को कानों-कान खबर कैसे नहीं लग पाई ? पीएनबी एक सूचीबद्ध कंपनी है. इसकी हर तिमाही बैलेंस शीट बनती है और इसका नियमित रूप से आडिट भी किया जाता है.

इस स्थिति में घोटाले की भनक न लगने की बात पर किसी भी सूरत में भरोसा नहीं किया जा सकता. वैसे भी पीएनबी के लिए नीरव मोदी प्रकरण कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले हीरा कारोबार से जुड़ी कंपनियां विनसम और श्री गणोश ज्वेलर्स बैंक को 9000 करोड़ रुपये की चपत लगा चुकी हैं. यदि पीएनबी ने इन घटनाओं से सबक लिया होता तो आज उसे पूंजी बाजार में यह फजीहत नहीं झेलनी पड़ती. हकीकत यह है कि पीएनबी का डूबा हुआ कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है.

बैंक के जानबूझ कर कर्ज न लौटाने वाली राशि में पिछले महज छह महीने में ही 23 फीसद की वृद्धि दर्ज हो चुकी है. इससे साफ संकेत मिलता है, इस बैंक के सिस्टम में ही खोट है और इस बीमारी से अन्य सार्वजनिक बैंक भी अछूते नहीं है. इसी वजह से इन बैंकों की फंसे कर्ज की राशि तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में सरकार को इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में आने के बजाय असल बीमारी के इलाज के उपाय करने चाहिए.



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