अहम साझेदारी

Last Updated 19 Feb 2018 03:52:01 AM IST

ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी की भारत यात्रा से नई दिल्ली और तेहरान के बीच रणनीतिक साझेदारी और पुख्ता हुई और भारत को मध्य एशिया में अपनी पहुंच बढ़ाने का मौका मिला है.


भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी (फाइल फोटो)

इस क्षेत्र से होते हुए यूरोप तक पहुंचने के लिए भारत सक्रिय प्रयास करता रहा है. और दक्षिण-उत्तर गलियारा परियोजना के तहत भारत, रूस और ईरान आपस में सहयोग कर रहे हैं. चाबहार बंदरगाह परियोजना ऐसा ही प्रयास है, जिसके माध्यम से भारत पाकिस्तान पर निर्भर न रहते हुए सीधे अफगानिस्तान और ईरान अपना माल भेज सकेगा. दोनों देशों के बीच कुल नौ समझौते हुए हैं, जिनमें चाबहार बंदरगाह और दोनों देशों के बीच प्रत्यपर्ण संधि सबसे अहम है. इसके अलावा पारंपरिक स्वास्थ्य और चिकित्सा, कृषि, व्यापार आदि क्षेत्र भी हैं, जिनको लेकर द्विपक्षीय समझौते हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2016 में हुई तेहरान यात्रा के बाद से ही दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ था.

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि पाकिस्तान अपने क्षेत्र से होकर भारत, अफगानिस्तान और ईरान में सामान नहीं भेजने देता है. इसीलिए चाबहार के मसले पर दोनों देशों के बीच जो करार हुआ है, उसके तहत बंदरगाह के एक भाग के 18 माह तक संचालन का अधिकार भारतीय कंपनी को सौंपा गया है, जो भारत की व्यापारिक दृष्टि से अहम है. चाबहार के संबंध में जो समझौते हुए हैं, उसका संदेश चीन, पाकिस्तान ही नहीं बल्कि अमेरिका तक जाता है.

भारत और ईरान दोनों ने अमेरिका की उस धमकी की अनदेखी करते हुए यह समझौता किया है, जो ईरान पर अधिक-से-अधिक प्रतिबंध लगाने का पक्षधर रहता है. आने वाले दिनों में ईरान के खिलाफ अमेरिका कोई नया प्रतिबंध भी लगा सकता है. इस्राइल के साथ भारत के बढ़ते आत्मीय संबंधों के चलते यह धारणा बन रही थी कि भारत अपनी पारंपरिक पश्चिम एशिया की नीति से हट रहा है, लेकिन रोहानी की भारत यात्रा और हाल में हुई मोदी की फिलिस्तीन यात्रा से इस धारणा को गलत साबित करने में मदद मिलेगी.

दरअसल, भारत पश्चिम एशिया में संतुलन बनाकर रखना चाहता है. भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और वह किसी के दबाव में आकर काम नहीं करती; ईरान के साथ जो समझौते हुए हैं, वह इस बात को साबित करता है. आने वाले दिनों में भारत और ईरान के बीच आर्थिक व रणनीतिक साझेदारी और पुख्ता होगी, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए.



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