लाज रखो कामरेड

Last Updated 17 Feb 2018 04:12:56 AM IST

सीपीएन-यूएमएल के नेता केपी शर्मा ओली के नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के साथ ही वहां की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है.


लाज रखो कामरेड

सीपीएन- माओवादी सेंटर के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अपनी पार्टी का रुख साफ करते हुए कह दिया है कि सीपीएन-यूएमएल के साथ उनकी पार्टी के विलय की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है.

विलय के बाद ही हमारी पार्टी सरकार में शामिल होगी. ओली सरकार की राजनीतिक स्थिरता की दृष्टि से प्रचंड के  इस रुख का विशेष राजनीतिक महत्त्व है. माना जा रहा है कि दोनों दलों के विलय की प्रक्रिया में वैचारिक और सैद्धांतिक मसले हैं, जिन पर गतिरोध बना हुआ है.

माओवादी नेता चाहते हैं कि उनके दस वर्षो के जनयुद्ध को एक राजनीतिक उपलब्धि के तौर पर स्वीकार किया जाए. उधर सीपीएन-यूएमएल जनयुद्ध और माओवादी क्रांति के ऐतिहासिक महत्व को स्वीकार करने से इनकार कर रही है और अपनी पार्टी की नई राजनीतिक लाइन ‘पीपुल्स मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी’ को स्वीकार करने के लिए माओवादियों पर दबाव डाल रही है.

आम तौर पर कम्युनिस्ट पार्टियों में ‘टू लाइन बैटल’ चलता रहता है. लगता है कि दोनों पार्टियों के विलय में यह टू लाइन बैटल ही दीवार बना हुआ है. रस्साकशी जारी रही तो ओली सरकार के भविष्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है. दरअसल, पिछले चुनावों में संसद की 275 सीटों में से वाम गठबंधन को 174 सीटें मिली हैं.

इनमें प्रधानमंत्री ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने 121 सीटें जीती हैं अर्थात उनकी पार्टी अकेले दम पर साधारण बहुमत का आंकड़ा छूने से थोड़ी पीछे रह गई. प्रचंड की माओवादी पार्टी के समर्थन से ही उनकी सरकार चल सकती है. चुनाव से पहले ही दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ था और उसी समय उनके  बीच विलय का मसौदा भी तैयार हुआ. ओली के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड की अपेक्षा है कि विलय के बाद नई पार्टी का अध्यक्ष उन्हें बनाया जाए. 

दोनों पार्टियों के बीच वैचारिक और नेतृत्व से जुड़े मुद्दे तय नहीं होते हैं तो कहना मुश्किल है कि नेपाल की राजनीतिक तस्वीर कैसी बनेगी. ओली सरकार की पहली प्राथमिकता देश को राजनीतिक स्थिरता देना है. जनता ने जिस उत्साह के साथ वाम गठबंधन को सरकार चलाने का जनादेश दिया है, वाम गठबंधन के नेता उसकी लाज निभाएंगे-ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.



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