बीमा पर राहत
सर्वोच्च न्यायालय ने मेडिकल जांच के बिना प्रीमियम की राशि वसूलने पर बीमा पॉलिसी को जायज ठहराते हुए एक अहम फैसला दिया है.
सर्वोच्च न्यायालय |
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट लहजे में कहा है कि अगर मेडिकल जांच अनिवार्य है तो बीमा कंपनी को पहले हर कीमत पर डॉक्टरी मुआयना किए जाने की व्यवस्था करनी चाहिए और उसके बाद ही प्रीमियम की ओर नजर करनी चाहिए.
मेडिकल जांच कराने का दायित्व बीमा करने वाली कंपनी का है न कि उपभोक्ता का. लेकिन धन कमाने के नशे में कई बीमा कंपनियां बगैर डॉक्टरी जांच कराए ही प्रीमियम वसूलना आरंभ कर देती हैं और किसी अप्रिय स्थिति में अपनी जिम्मेदारियों का ठीकरा उपभोक्ताओं पर फोड़ने की कोशिश करती हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए सख्ती दिखाई है और कहा है कि प्रीमियम वसूलने के बाद और बीमाधारक की मौत होने पर उसे मुआवजे की राशि अदा करने के बजाये मेडिकल जांच नहीं कराने का बहाना नहीं चलेगा. मृतक के परिजन संपूर्ण बीमा राशि प्राप्त करने के हकदार हैं. दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एन वी रमण एवं न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर की खंडपीठ ने यह फैसला हैदराबाद के के डी श्रीनिवास की अपील पर दिया.
बीमा कंपनी एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने यह कह कर बीमा राशि देने से मना कर दिया था कि श्रीनिवास के बेटे ने मेडिकल जांच नहीं कराई थी. इसलिए उसकी मौत होने पर कंपनी बीमे की रकम का भुगतान नहीं कर सकती.
श्रीनिवास, उनकी पत्नी और उनके बेटे ने मकान बनाने के लिए संयुक्त रूप से हाउसिंग लोन लिया था. हाउसिंग लोन लेते समय ग्रुप इंश्योरेंस किया गया था और इसके लिए बाकायदा प्रीमियम वसूला गया था. लोन लेने के दो महीने के बाद ही वेणुगोपाल की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.
सर्वोच्च न्यायालय ने जोर देकर कहा कि अगर कंपनी ने बगैर स्वास्थ्य की जांच पड़ताल किए बीमे के प्रीमियम की राशि वसूल कर ली तो इसका सीधा अर्थ है कि बीमा कंपनी ने उपभोक्ता को चिकित्सकीय जांच से छूट प्रदान कर दी है. अदालत का यह निर्णय ऐतिहासिक है, जिससे न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में पसर रही घोर बाजारवादी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगेगा बल्कि बड़ी संख्या में आमजन को भी राहत मिलेगी.
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