धूल झोंकने की कवायद

Last Updated 15 Feb 2018 01:25:50 AM IST

अपनी ही मांद में फंस जाना इसे ही कहते हैं. आतंकवाद और आतंकवादियों पर हमेशा से नरम रुख अख्तियार करने वाला पाकिस्तान अब दुनिया की नजरों में गलत दिखने लगा है.


धूल झोंकने की कवायद

18 से 23 फरवरी तक पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सालाना बैठक से ठीक पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून अहमद ने वैश्विक आतंकियों की फंडिंग की सूची में डाले जाने से बचने के लिए जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा और फलह-ए-इंसानियत फाउंडेशन के खिलाफ अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए हैं. इसे भले भारत की कामयाबी और पाकिस्तान पर दबाव के रूप में देखा जाए, मगर यह सफलता की पूरी कहानी नहीं है. इससे पहले भी 2012 से 2015 तक पाकिस्तान एफएटीएफ की ‘ग्रे-लिस्ट’ में रह चुका है. चूंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने कई बार पाकिस्तान की करतूतों और आतंकवाद को लेकर उसके नरम रुख का कच्चा चिट्ठा खोला है. अच्छा तालिबान और बुरा तालिबान के पाकिस्तानी नजरिये की हकीकत को दुनिया देर से समझ पाई. अब भी चीन जैसे देश पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे-लिस्ट में शामिल होने से बचाने की जुगत में लगे हैं. पिछली बार भी चीन ने पाकिस्तान के बचाव में गलत हथकंडे अपनाए थे. हालांकि, इस बार पाकिस्तान का पक्ष इस नाते कमजोर है कि एफएटीएफ में शामिल चार मुल्क अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी पाकिस्तान के रुख से दुखी और निराश हैं. ग्रे-लिस्ट से बचने के लिए तीन सदस्य देशों का वोट जरूरी है.

भारत हमेशा से पाकिस्तान के खिलाफ टेरर फंडिंग का मसला उठाता रहा है. पाकिस्तान शुरुआती समय से ही एफएटीएफ के रेडार पर रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र में सूचीबद्ध संगठनों के खिलाफ प्रतिबंधों का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहा है. आतंकवादियों को वित्त पोषण के साथ ही मनी लांड्रिंग के मामले में पाकिस्तान का चरित्र वि का हर राष्ट्र जानता-समझता है. और हर बार वह दुनिया की आंखों में प्रतिबंध रूपी धूल नहीं झोंक सकता है. इससे पहले भी जमात-उद-दावा और उसके मुखिया हाफिज सईद के अलावा कई कुख्यात संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का प्रपंच कर चुका है. लेकिन हर बार बेनकाब भी हुआ है. काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. सो पाकिस्तान को आतंकवाद पर अपनी नीति और नीयत हर हाल में बदलनी ही होगी.



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