फिर दी चेतावनी
रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कीमत चुकाने की जो चेतावनी दी है, वह स्वाभाविक है.
फिर दी चेतावनी |
जिस तरह तीन दिनों में आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों के तीन ठिकानों पर हमला किया, उससे पूरे देश में गुस्से की लहर है.
खासकर सुंजवान सैन्य शिविर पर हमले ने देश को हिला दिया है, जिसमें पैरा कमांडो और गरु ड़ कमांडो को 51 घंटे से ज्यादा संघषर्त्मक कार्रवाई करनी पड़ी हो और उसके बाद सफाई कार्रवाई अभी तक जारी हो. ऐसे हमले लंबे समय की पूर्व तैयारी के बिना हो ही नहीं सकते. अगर मारे गए आतंकवादी पाकिस्तानी थे, तो जाहिर है कि घुसपैठ कराई गई होगी.
उसके पहले सैन्य ठिकाने में घुसने से लेकर हमले का पूरा प्रशिक्षण आतंकवादियों का हुआ होगा. इन सब में पाकिस्तानी सेना की परोक्ष या प्रत्यक्ष भूमिका निश्चित है. सरकार के पास जो रिपोर्ट है, उसमें पाकिस्तान के हाथ होने की पुष्टि हो रही है.
यही नहीं, हमले के दौरान भी सीमा पार से आतंकवादियों का संपर्क बना हुआ था. हालांकि पाकिस्तान ने इस आरोप से इनकार किया है, और भारत पर उसे बदनाम करने का जवाबी आरोप मढ़ दिया है. किंतु उसके इनकार का कोई अर्थ नहीं है. रक्षा मंत्री ने हमले में पाकिस्तान की भूमिका से जुड़े सबूत उसे प्रदान करने की बात कही है.
पाकिस्तान को सबूत भेजे जाते हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं होती. इसलिए भारत केवल हमला झेलने और सबूत देने तक सीमित नहीं रह सकता. इसमें रक्षा मंत्री का कीमत चुकाने की चेतावनी उचित प्रतीत होती है.
प्रश्न है कि पाकिस्तान को कीमत कैसे चुकानी पड़ेगी? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका जवाब हमारे पास नहीं है. रक्षा मंत्री ने बयान दिया है, तो देश यही चाहेगा कि यह केवल जुबानी चेतावनी बनकर न रह जाए.
जुबानी चेतावनियां न जाने पाकिस्तान को कितनी बार दी गई. इससे उसे न कोई फर्क पड़ा है, न पड़ेगा. सच कहा जाए तो यह शब्दों को कार्रवाई में बदल कर दिखाने का समय है. ऐसा नहीं किया गया तो फिर अगला हमला होगा और हम उसका इसी तरह सामना करेंगे. शायद तब भी सरकार की ओर से ऐसे ही बयान सुनने को मिलेंगे.
ऐसा हुआ तो किसी तरह के कड़े बयान का न कोई अर्थ रह जाएगा और न उसकी विसनीयता ही. इसलिए समय की मांग है कि सरकार अपनी मांसपेशियां फैलाए और वाकई कुछ करे, जिससे पाकिस्तान को ऐसी कीमत चुकानी पड़े कि उसके बाद वह आतंकवादी हमले कराने की सोच तक न सके.
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