ताक पर कानून
दिल्ली के औद्योगिक इलाके बवाना में अवैध पटाखा गोदाम में आग से 17 लोगों की मौत वाकई चिंतित और सोचने पर मजबूर करती है.
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आमतौर पर फैक्टरियों में आग शार्ट सर्किट से होते हैं. हालांकि यहां आग लगने की वजहों का पता नहीं चल सका है. लेकिन आग ने पल भर में जिस तरह जान और माल को अपनी जद में ले लिया, वह हादसे की भयावहता बताने को काफी है. वैसे तो इस फैक्टरी में प्लास्टिक दानों का निर्माण होता था, मगर गुपचुप तरीके से इसे पटाखा फैक्टरी और गोदाम में बदल दिया गया था.
दिल्ली में बवाना के अलावा नरेला, झिलमिल, पीरागढ़ी, रोहतक रोड, मायापुरी समेत कुल 22 औद्योगिक इलाके हैं. और कमोबेश हर जगह आग से बचाव के उपाय बेहद लचर और कामचलाऊ हालात में हैं. और जब राजधानी के इन इलाकों की यह दशा है तो देश के बाकी इलाकों की कल्पना ही बेमानी है.
बवाना स्थित इस फैक्टरी में बाहर निकलने और प्रवेश करने का केवल एक ही रास्ता छोड़ा गया था. यहां तक कि बाहर निकलने की जगहों पर अनाधिकृत निर्माण कार्य और सामान रखा गया था. जहां तक बात अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी होने की बात है, इस फैक्टरी को वैसा कोई प्रमाण पत्र मिला ही नहीं था. ऐसे में नगर निगम और संबंधित प्राधिकरण की भूमिका को आसानी से समझा जा सकता है.
क्या प्रशासन, पुलिस और अन्य विभाग दिखावटी हो गए हैं? आखिर क्यों पूर्व के हादसों से कोई सबक नहीं लिया जाता है? क्यों आग या किसी अन्य वजहों के चलते होने वाले हादसों से बचाव के उपाय समय-समय पर फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों और कर्मचारियों को नहीं बताए जाते? जिस तरह की वारदात बवाना में हुई, करीब ऐसे ही हादसे मुंबई के कमला मिल और नवम्बर में रायबरेली के एनटीपीसी ईकाई में हुई थी. लेकिन कार्रवाई और बचाव के नाम पर वही ढाक के तीन पात.
ऐसे हादसे न हों, इससे ज्यादा अहम यह कि बचाव कितनी द्रुत गति से होता है? और यह तभी हो सकता है जब फैक्टरी मालिक ने ईमानदारीपूर्वक आग से लड़ने की सारी सहूलियत जुटा रखीं हों. बवाना में जिस तरह की लापरवाही सामने आई है, उससे इसे सुनियोजित हत्या कहना ज्यादा समीचीन होगा. अब तो सरकार को चेत जाना चाहिए.
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