सख्ती के मायने

Last Updated 16 Jan 2018 03:24:38 AM IST

कश्मीर में स्थायी रूप से अमन बहाली के वास्ते सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने राजनीतिक-सैन्य रुख की वकालत की है.


सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत

उनके कहने का आशय यही है कि सरकार बातचीत के जरिये पाकिस्तान की सरकार को आतंकवाद फैलाने और घुसपैठ सहित तमाम मसलों पर विचार करे, लेकिन सेना का आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती का रुख बरकरार रहेगा. जनरल रावत आतंकवादियों के खिलाफ अपने कड़े बर्ताव के लिए जाने जाते हैं.

हालांकि सेना प्रमुख ने इसके अलावा दो और अहम बातें कहीं. पहली यह कि जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे सशस्त्र बल ‘यथास्थितिवादी’ नहीं हो सकते. उन्हें हमेशा चौकस रहना होगा और अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा.

और दूसरी महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही कि अगर सही तरीके से सैन्य और राजनीतिक विमर्श होगा तो राज्य में स्थायी तौर पर शांति की पताका फहराएगी. सेना प्रमुख की इन बातों से इतना तो पता चलता है कि सेना अपनी सख्ती छवि को इसी तरह कायम रखना चाहेगी. यानी ‘ऑपरेशन ऑलआउट’ उस वक्त तक चलता रहेगा जब तक राज्य में आतंकी गतिविधियां खत्म नहीं हो जातीं.

गौरतलब है कि ‘ऑपरेशन ऑलआउट’ का पूरा एक साल हो गया. इस दौरान 210 आतंकवादी मार गिराए गए. यह आंकड़ा बीते तीन साल में सबसे ज्यादा है. हालांकि साल भर के दौरान आतंकी हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं. 10 दिसम्बर तक जहां  2016 में 308 आतंकी हिंसा की वारदात हुई वहीं 2017 में यह बढ़कर 335 हो गया. वहीं सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं में अभूतपूर्व तेजी दर्ज की गई है. पाकिस्तान की तरफ से सिर्फ 2017 में 820 घटनाएं संघर्ष विराम उल्लंघन की सामने आई.

यह सब कुछ तब है, जब सेना की पुरजोर सख्ती की हर तरफ चर्चा है. इस नाते सेना प्रमुख के आक्रामक रुख और पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए हर विकल्प को आजमाने से गुरेज नहीं करने के गहरे अर्थ हैं. एक तरह से उन्होंने सरकार को बातचीत कर मसले को सुलझाने की प्रक्रिया जारी रखने का संकेत भी दे दिया है. देखना है सेनाध्यक्ष की नई युद्ध नीति से घाटी के हालात कितने नियंत्रण में रहेंगे.



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