एसआईटी से उम्मीद
सिख दंगों (1984) में अपना सबकुछ खो चुके परिवारों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने भारी राहत दी है.
एसआईटी से उम्मीद |
अदालत ने उन 186 मामले जिन्हें बिना किसी कारण के बंद कर दिया गया था, उसकी जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन के आदेश दिए हैं.
हालांकि इस नरसंहार के लिए अब तक 10 आयोग और समितियां बन चुकी हैं लेकिन खूनखराबा करने वाले अभी भी आजाद घूम रहे हैं. दरअसल, दंगे की जांच जिस महकमे को करनी थी, सबसे बड़ा सवाल उसकी भूमिका पर ही उठता है. पुलिस ने न सिर्फ शिकायतों की अनदेखी की बल्कि कई मामलों में सिखों पर हुए हमलों में भीड़ का साथ दिया. और यही इस कांड की सबसे बड़ी त्रासदी है.
सुप्रीम कोर्ट के एसआईटी गठन करने के निर्णय से पीड़ित परिवारों को न्याय पाने की उम्मीद एक बार फिर जगी है, मगर पूर्व के एसआईटी की सुस्त और सतही तफ्तीश से यह आशंका भी बढ़ जाती है कि क्या इस बार दंगा पीड़ितों को वो मिलेगा, जिसकी आस में ये लोग अभी भी न्यायपालिका पर भरोसा बनाए हुए हैं.
आश्चर्य और चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में कुल चार सौ से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए जिनमें से 186 केस को बिना जांच किए ही बंद करने का आदेश दे दिया गया. क्या इस लापरवाही, हीलाहवाली और बेहद कामचलाऊ रवैये का भी अदालत संज्ञान लेगी और क्लोजर रिपोर्ट लगाने वाले दल को दंडित करेगी? आखिर 186 मामलों की जांच क्यों नहीं की गई और किसके इशारे पर इसे बंद कर दिया गया? यह जानना भी अदालत के लिए बेहद अहम है.
विशेषज्ञों की मानें तो सर्वोच्च अदालत का निर्णय इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि 34 साल बाद एक बार फिर जांच के उन बिंदुओं की वैज्ञानिक और सिलसिलेवार तरीके से तफ्तीश में जरूर कुछ सकारात्मक निकलेगा और खून की होली खेलने वालों को सींखचों के अंदर डाला जाएगा. कई ऐसे सालों पुराने मामलों में एसआईटी ऐसा कर भी चुकी है.
विदेशों में भी बीसीयों साल पुराने केस की तह तक जांच एजेंसियां गई हैं. सो, इंसाफ मिलने का भरोसा तो मजबूत हुआ है, बशर्ते ईमानदारी और बिना किसी दबाव के जांच हो. यह सच है कि जिनका सबकुछ बर्बाद हो चुकी है, लुट चुका है उसे उसी रूप में वापस नहीं किया जा सकता. किंतु न्याय मिलने से उनकी पीड़ा काफी हद तक कम होगी साथ ही न्यायपालिका पर भी लोगों का भरोसा और ज्यादा बढ़ेगा.
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